पिंडी से रिसते जल को लेकर वैज्ञानिक भी हैरान
कानपुर:(Kanpur) जनपद मुख्यालय से लगभग चालीस किलोमीटर दूर घाटमपुर में स्थित अति प्राचीन मंदिर मां कुष्मांडा देवी की पूजा कई पीढ़ियों से माली परिवार करता चला आ रहा है। मंदिर में पुजारी के तौर पर परिवार की बेटियां और बहुएं ही मां की पूजा करती हैं।
मंदिर परिसर में मौजूद सबसे वृद्ध चुन्नीलाल सैनी ने बताया कि माता की पूजा अर्चना और देखरेख आठ पुष्ट से करते आ रहें है। देश में मौजूद सभी सिद्ध पीठों में यह चौथे नम्बर की हैं। जबसे मां की सेवा हम लोग कर रहे हैं, हम लोगों का परिवार काफी संख्या में बढ़ चुका है। सभी लोग मंदिर परिसर में बने रहते हैं।
प्रत्येक सोमवार व शुक्रवार को मंदिर में लगती है भक्तों की भीड़
माली परिवार के बुजुर्ग चुन्नी लाल सैनी ने बताया कि मां की पूजा दोनों नवरात्र और प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार को की जाती है। दोनों दिन दूर-दराज से श्रद्धालु मां का दर्शन करने के लिए आतें है।
मां कुष्मांडा देवी पिंडी के रूप में दो मुख के साथ विराजमान हैं। उनका आदि और अंत आज तक किसी को नहीं मिला है। इसी के चलते यह लेटी हुई प्रतीत होती हैं। मां कुष्मांडा देवी का मंदिर करिश्माई है। आज भी पिंडी से जल रिसता रहता है। इसे देखकर वैज्ञानिक भी पता नहीं लगा सके।
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति करने वाली देवी है मां कुष्मांडा
मां कुष्मांडा को ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति करने वाली देवी कहा जाता है। इसी के चलते इन्हें आदि शक्ति और आदि स्वरूपा के नाम से भी जानते हैं। हिन्दू शास्त्रों में यह भी कहा जाता है कि मां कुष्मांडा का विधि विधान से पूजन करने पर अनेक प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित घाटमपुर कस्बे में स्थित मां कुष्मांडा देवी मंदिर की पिंडी से रिसने वाले जल से आंख सम्बन्धी सारे विकार दूर हो जाते हैं। मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति 06 महीने तक मां के जल को अपनी आंखों मे लगाए तो उसकी खोई रोशनी तक वापस आ सकती है।
क्या है मां कुष्मांडा के मंदिर का इतिहास ?
इतिहासकार डॉ. भवानीदीन की मानें तो दो मुख वाली कुष्मांडा देवी की मूर्ति शैली मराठा कालीन प्रतीत होती है, जो दूसरी से पांचवी शताब्दी के बीच की है। इनकी खोज कोहरा नामक ग्वाले ने की थी। उस समय यहां के राजा घाटमपुर दर्शन हुआ करते थे। उन्होंने ही सन 1330 में इस स्थान पर मां की मढ़िया का निर्माण करवाया था। इसके बाद सन 1890 में एक व्यवसायी ने इस मंदिर का नये सिरे से जीर्णोद्धार करवाया। 80 वर्षीय बुजुर्ग चुन्नीलाल सैनी की मानें तो उनके पूर्वजों ने बताया था कि सालों पहले इस स्थान पर जंगल हुआ करता था। लोग अपने पालतू जानवरों को चराने इस छेत्र में आते थे। एक गाय हर दिन इस स्थान में आ कर अपना दूध गिरा देती थी।
इस गाय का मालिक परेशान हो गया कि मेरी गाय का दूध हर दिन कहां गायब हो जाता है। उसने अपनी गाय का पीछा की तो उसने गाय को इसी स्थान में दूध गिरते देखा। उसने जब इस स्थान की खुदाई की तो मां की ये मूर्ति मिली और उसने इस मूर्ति को निकालना चाहा तो वह खोदते-खोदते हार गया, पर मूर्ति का अंत नहीं ढूंढ पाया। उसके बाद राजा घाटमपुर दर्शन ने यही छोटी से मढ़िया बनवा दी। जिसकी लोग पूजा करने लगे। यह भी बताया जाता है कि अंग्रेजों के शासन में इस स्थान से सड़क बनाने की कोशिश की गई पर उनको भी कोई सफलता नहीं मिली, क्योंकि जितने दिन में मूर्ति की खुदाई होती थी, दुसरे दिन भी वहीं से खुदाई करनी पडती थी।
चतुष्टय कुष्मांडा देवी का विश्व में है इकलौता मंदिर
घाटमपुर स्थित मां कुष्मांडा देवी चतुष्टय आकार की हैं। इनके दो मुख हैं और उनकी पिंडी जमीन में लेटी हुई प्रतीत होती है। स्थानीय निवासी चुन्नीलाल सैनी की मानें तो यह विश्व की इकलौती मूर्ति है, जो चतुष्टय कोण की है। इसी के चलते यहां नौरात्री की चतुर्थी को लाखों की संख्या में भक्तजन आते हैं। मां के श्रृंगार के साथ भोग के लिए कच्चे चने चढ़ाते हैं। यहां कुम्हड़ा की बलि भी चढ़ाई जाती है, जो मां का पसंदीदा फल है।