
नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने अगस्त 2015 में एक 23 वर्षीय महिला के साथ बलात्कार और हत्या के लिए एक व्यक्ति को दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि सबूत स्पष्ट रूप से उसके खिलाफ अपराध की पुष्टि करते हैं।
न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता और न्यायमूर्ति पूनम ए. बंबा की खंडपीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय को निचली अदालत के फैसले में कोई दुर्बलता या अवैधता नहीं मिली और किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।
दोषी सिद्धार्थ द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने संदेह से परे उन घटनाओं की श्रृंखला को साबित कर दिया है, जो उसके अपराध की ओर इशारा करती हैं। पीठ ने कहा कि फोरेंसिक रिपोर्ट अपराध स्थल पर दोषी की उपस्थिति को साबित करती है और उसे अपराध से भी जोड़ती है।