
ओ मन मेरे, कह बार-बार
गुज़र जाएगा ये अंधियारा भी
गहरे दुख भी, सघन शोक भी
रह नहीं सकते कयामत तक
आशा किरण दिखे कल शायद।
गुज़र जाएगा ये अंधियारा भी
हवा हो जाएगा इसका दुस्साहस
थम जाएगा, डूबते सूरज संग ज्यों थमती हवा
आश्वस्त और शांत होकर पाओगे चैन
भुलाकर इस बुरे सपन को।
बारम्बार दोहराओ इसको
ओ मेरे मन, हो जाओ निर्भय
गुज़र जाएगा ये अंधियारा भी
जैसे गुज़रे तमाम दुःस्वप्न अतीत में
जैसे फना हुए तमाम दर्द-ओ-दुख सबके।
रात के तारों और भोर के सूरज सा लाजिम
झूमती घास के संगीत सा सच्चा
तमाम निराशाओं को धता बता
गुजर ही जाएगा ये अंधियारा भी।
कवि : ग्रेस नोल क्रोवैल
अनुवाद: भुवेंद्र त्यागी
वरिष्ठ कवि, लेखक व पत्रकार
मुंबई में निवास