
आज प्रॉमिस डे है। माने वादा करने का दिन । वैसे यह वैलेंटाइन वीक… रोज डे, टेडी बियर डे, चॉकलेट डे आदि -आदि बस मार्केटिंग गिमिक है । अब वादा करने का भी कोई दिन मुकर्रर किया जा सकता है भला ! मगर फिर भी आज का यह दिन सोचने पर मजबूर करता है कि प्रॉमिस क्यों किए जाते हैं, वादे क्यों पूरे नहीं हो पाते हैं, कमिटमेंट करने से दिल क्यों घबराता है.… आप क्या कहते हैं? आपने आज तक जितने भी वादे किए हैं क्या सभी निभाए हैं ? या यूं कहूं कि, क्या निभा पाए हैं ? मैंने देखा है वादा करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। हो सके तो आप वादा कीजिए ही नहीं।
इसके बजाय आप मन में ठान सकते हैं। मन में ठान के सामने वाले के लिए कुछ कर जाए तो वादे से बेहतर हो जाता है। क्योंकि कई बार होता यह है कि वादा करने के बाद आप किन्हीं कारणों से अगर उसे पूरा नहीं कर पाते हैं तो सामने वाले का आप पर से विश्वास उठ जाता है । और तो और आपका खुद पर से भी भरोसा डगमगा जाता है…एक ग्लानि घर करने लगती है। मैं अक्सर कहती हूं कि वादा तो नहीं करूंगी लेकिन कोशिश पूरी करूंगी । वो 99.9% वाली बात ! अब .1% ईश्वर पर भी छोड़ो भई ! और उस .1% का पूरा सम्मान किया जाना चाहिए !
मगर ! परन्तु ! किन्तु ! ज़िन्दगी में कई अवसर ऐसे आते हैं कि उस .1% की भी गुंजाइश नहीं होती । ऐसे में या तो वादा करने के बजाए स्वयं को और समय दो । उन कारकों को परखो जो भूत बनकर डरा रहे हैं। नहीं तो सीना ठोक कर वादा कर जाओ ! यह जानते, मानते हुए कि प्राण जाए पर वचन न जाई! कि यह वादा ही मेरा प्रेम है और यह प्रेम ही मेरा वादा है ।
उस वादे को इस तरह निभाओ कि वह स्वयं से किया गया एक वादा है …सामने वाले के लिए न सही, ख़ुद के प्रति तो ईमानदार बनो ! ( वॉयस राइटिंग की प्रैक्टिस है यह उपरोक्त ‘ज्ञान ‘ ! मैंने यह जाना कि बोलते हुए हम अलग तरह से सजग होते हैं जहां दिमाग़ का हस्तक्षेप तो क्या पूरा का पूरा नियंत्रण रहता है। जबकि सृजनात्मक लेखन बोल कर संभव नहीं …वह मन के धरातल से उंगलियों ही के माध्यम से निकलेगी… क्या पता ! मैं प्रॉमिस…नहीं नहीं …कोशिश करूंगी वॉयस राइटिंग से भी कुछ सृजनात्मक लिख सकूं