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सरगोशियां: मेरी आवाज मेरी पहचान है

यूँ अनजाने ही लता जी के नजदीक कब पहुँच गई पता नहीं चला। रोना हो तो लता जी… हँसना हो तो लता जी… कोई उत्सव मनाना हो तो लता जी… सखियों के साथ गेट टुगेदर हो तो लता जी…!

टीनएज रही होगी वह तब, जब जो चाहो वह गीत यूट्यूब पर चला लेने की सुविधा नहीं थी। तब एक बहुत छोटे से घर के आखरी वाले कमरे में अँधेरा करके खुद ही गुनगुना लेती थी, “मुझको इस रात की तन्हाई में आवाज ना दो,
जिसकी आवाज मिटा दे मुझे वह साज ना दो”
और बिना कहे मन की बात स्नेही से कह लेती थी।

या आज भी अपने छोटे से बेडरूम कि सारी लाइट्स ऑफ कर, जब स्पीकर पर पर चला लेती हूँ,
‘तुम जाओ कहीं तुमको अख्तियार,
हम जाएं कहाँ सजना ? हमने तो किया है प्यार”
तो लगता है दर्द की शिराओं पर गर्म थैली रख दी गई है।

या ख़ुशी में तब खुद ही गुनगुना लेती थी,
‘आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझेप’

और अब लगा लेती हूं स्पीकर पर गीत,
‘मुझे छू रही हैं, तेरी गर्म साँसें, मेरे रात और दिन पिघलने लगे हैं’

कभी उत्सवों में जब ढोलक पर गीत गाए जाते थे तब ढोलक की थाप पर झमक कर गाती थी,
‘आ जा सनम,
मधुर चाँदनी में हम- तुम मिले तो वीराने में भी आ जाएगी बहार,
झूमने लगेगा आसमान’

और अब स्पीकर पर लगाती हूँ,
‘तोहें सँवरिया नाहिं खबरिया, तुम्हरे कारण अपने देश में सजन,
हम हो गए परदेसी…!’

और उन पैरों को थिरकता महसूस करती हूँ जो थिरकन से महरूम हैं…!

कॉलेज के फ्री पीरियड में ख़ुर्शीद गाती थी, ‘इतना तो याद है मुझे कि उनसे मुलाकात हुई…’ और रजनी, ‘हमने तुमको प्यार किया है जितना,
कौन करेगा उतना’
अनिंदिता अब भी मिलती है तो गाती है ‘हम तेरे प्यार में सारा आलम खो बैठे’ या ‘क्या जानूँ सजन, होती है क्या ग़म की शाम…!’

लेकिन असल में शायद कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया यह सारे गीत लता जी के गाए हुए थे। यह सब बिना सोचे-समझे होता था/ होता है।
पहले गीत के बोलों से मतलब होता था, धुन से मतलब होता था, सुर से मतलब होता था…! इससे मतलब थोड़ी ना होता था कि गीत गाया किसने है ?

बहुत दिन बाद इस बात पर गौर करना शुरू किया तो पता चला कि अधिकतर पसंदीदा गीत तो लता जी के गाए हुए थे।

हम से पहले वाली पीढ़ी के लिए तो जैसे विदेश का मतलब लंदन या अमेरिका वैसे स्त्री सुरों का मतलब लता मंगेशकर…! कभी-कभी वह गीत आशा भोंसले, सुमन कल्याणपुर या अन्य किसी के द्वारा भी गाया गया होता था लेकिन उनके लिए सब लता थे…! लता जी इतना बसी थी लोग में।

और जब Yatindra की किताब लता सुर गाथा पढ़ी तो लता जी के और ज्यादा नजदीक आई।

आश्चर्य होता कि आज़ादी के बाद दुनिया कहाँ से कहाँ आ गई लेकिन लता जी एक हैं जिनकी आँखों ने नेहरू से लेकर मोदी तक सब को देखा, सारे परिवर्तन देखे…
… लेकिन अच्छा यह लगा कि सत्ता भले परिवर्तित हुई लेकिन लता जी का मान जैसा था वैसा ही बना रहा, नेहरू से लेकर मोदी की निगाह में।

आज का दिन बहुत बड़ी रिक्ति ले कर आया है। फिर पता नहीं कब पैदा होगी ऐसी हस्ती जिन्हें पीढ़ियाँ पूजेंगी।

सरस्वती की अवतार सी वे सरस्वती के प्रकाट्य दिवस के अवसान के साथ शायद पुनः मिल गईं देवी सरस्वती की दैवीयता में…!

यह एक वीडियो बनाया अभी जिसमें लता जी नेहरू जी, इंदिरा जी, अटल जी और वर्तमान प्रधानमंत्री के साथ समान रूप से सम्मान पाती तस्वीरों के साथ हैं…!

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