
बिगड़ेंगे आज खुल के मगर कल बनेंगे हम
कालिख बने तो आँख का काजल बनेंगे हम
उसने कहा था उसको कि जंगल पसंद है
सो, अब अगर बनें भी तो जंगल बनेंगे हम
कट जाए उम्र सारी कदम चूमते हुए
उस सुंदरी के पाँव की पायल बनेंगे हम
लोहार चाहता है कि हम बेड़ियाँ बनें
लेकिन हमारी ज़िद है कि साँकल बनेंगे हम
मिलता नहीं दिमाग़ लगाने से वो कभी
तो तय रहा कि आज ही पागल बनेंगे हम
हम चाहते हैं इसलिए बिगड़ रहे अभी
बनने पे आ गए तो मुसलसल बनेंगे हम
दुनिया बनाने वाले ये ख़्वाहिश है आख़िरी
गर वो ज़मीं बनेगी तो बादल बनेंगे हम
- मुक्तेश्वर पराशर