लघुकथा: दार्शनिक और मोची

0
900

एक दार्शनिक फटे जूते लेकर एक मोची की दुकान पर आया और मोची से बोला, “जरा इनकी मरम्मत तो कर दो।”
मोची ने कहा, “अभी तो मैं दूसरे के जूते ठीक कर रहा हूं, और आपक जूतों की बारी आने के पहले कई और भी जूते ठीक करने हैं। आप अपने जूतों को यहीं छोड़ जाइए और लीजिए अपना काम चलाने के लिए एक दूसरी जोड़ी पहन लीजिए। कल आकर अपने जूते ले जाइएगा।” दार्शनिक लाल-पीला होकर बोला, “मैं अपने ही जूते पहनता हूं, दूसरों के नहीं।” तब उस मोची ने कहा, “अच्छा, तब तो आप पूरे-पूरे दार्शनिक हैं, जो दूसरों के जूतों में अपने पैर नहीं डाल सकते। इसी सड़क पर एक दूसरे मोची की दुकान है, जो मेरी अपेक्षा दार्शनिकों के स्वभाव से अधिक परिचित है। आप कृपया उसके पास से मरम्मत करवा लें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here