motivational story : ज्ञान की गरिमा

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एक बार एक आलोचक ने स्वामी दयानंद सरस्वती से कहा, ‘आप जिस वैदिक ज्ञान की गरिमा का बखान करते हैं, अगर आपको अंग्रेजी आती तो वह विदेशों में भी फैल सकता था। आप विदेशों में भी जाने जाते।’

स्वामीजी हंस कर बोले, ‘लेकिन एक भूल आपसे भी हुई है, जो आपने संस्कृत नहीं पढ़ी। अगर आपने पढ़ी होती तो हम मिल कर देश का सुधार करते । उसके बाद विदेशों की ओर मुंह न करते । जो ज्ञान का दीपक अपने घर में ही उजाला न कर सके, वह दूसरों का घर क्या रोशन करेगा?”

उन दिनों अंग्रेजी राज अपने यौवन पर था और यातायात के साधन भी विकसित नहीं हुए थे। फिर भी स्वमी दयानंद ने पूरे देश में घूम कर हिन्दी और संस्कृत के माध्यम से ज्ञान बांटा।