वो कहते हैं
तुम बोलती बहुत हो
जमाने को तोलती बहुत हो
यकीन मानो
मैं इससे इंकार नहीं करूंगी
तुम्हारी बातों को नज़रंदाज़ नहीं करूंगी
लेकिन क्या तुम मेरी एक बात का जवाब दोगे
जवाब दोगे कि क्यों जब मेरे संस्कारों पर ऊंगली उठती है तो तुम खामोश रहते हो?
क्यों जब मुझे मेरे आत्मसम्मान को कुचलकर आगे बढ़ने पर मजबूर किया जाता है तो तुम खामोश रहते हो?
क्यों जब मुझे पढ़ लिखकर दिमाग खराब होने का ताना दिया जाता है तो तुम खामोश रहते हो?
क्यों जब मुझे नौकरी की घमंड में चूर औरत का खिताब दिया जाता है तो तुम खामोश रहते हो?
यकीन मानों
आज जब तुमने मुझ पर यह तोहमत लगाई है तो मैंने यह बात उठाई है।
हर उस सवाल से पर्दा उठाया है जिसने मेरे दिल से आवाज़ लगाई है।
सच कहती हूं प्रिये,
अगर तुम मेरी ढाल बन मुझ पर उठाई हर ऊंगली को गिरा देते
मुझ पर कसी गई हर फब्तियों को अपने बुलन्द इरादों से ढहा देते
तो मुझे बोलने की ज़रूरत ही न पड़ती
यह मुंह खोलने की ज़रूरत ही न पड़ती।
यदि सचमुच मेरी फिक्र है तो
मुझ पर उठी हर ऊंगली गिरा देना
जब मैं बोलूं मेरे स्वर में अपने स्वर मिला देना
सच कहती हूँ तुम्हारे स्वरों में यह बोलती औरत विलीन हो जाएगी
अपने व्यक्तित्व को तुम्हारे अनुसार ढालने में लीन हो जाएगी
सात जन्मों का वादा करनेवाले सिर्फ यह एक वादा कर ले
फिर देख मेरी भी दुनिया तुझ सी रंगीन हो जाएगी।
-रजनी
युवा कवयित्री और पत्रकार।