बिल्लू ठेले वाला
खींचता है दुनिया भर का बोझ
सुबह सात बजे से रात नौ बजे तक
नहीं लेता सांस वह
जरा भी रुककर पल भर।
बिल्लू ठेले वाला
पहुंचाता है कुंटलों सामान
मीलों-मीलों दूर तक
कड़े सफर में दिन भर।
बिल्लू ठेले वाला
सुनता है डांट-फटकार दुनिया भर की
नहीं होता मायूस
कंक्रीट के इस जंगल में।
बिल्लू ठेले वाला
शाम तक थककर हो जाता चूर
रात नौ बजे खाकर लेटता ठेले पर
समा जाता नींद के आगोश में।
भुवेन्द्र त्यागी
कवि, अनुवादक और पत्रकार