आप जीत गए सरकार हार गई… आपका साथ छोड़ भाग जाने वाले अन्य किसान नेताओं से जानना चाहेंगे कि आखिर क्या आप लोग अपने ऐतिहासिक आंदोलन को केवल इसलिए छोड़ दिए कि उसे कुछ शरारती तत्वों द्वारा एक-आध जगहों पर हिंसक कर दिया गया?
क्या आप ऐसी नाजुक स्थिति में असहाय किसानों का साथ छोड़ भाग जायेंगे?
क्या आंदोलन हिंसक हो जाने से तीनों काले कानून सफ़ेद हो गये??
क्या आप का उद्देश्य, जिसके लिए आप लोग 62 दिनों तक अनवरत चट्टान की तरह बैठे रहे पूरा हो गया?
या फिर आपकी नजर में जन आंदोलन इतना कमजोर होता है कि उसे कोई भी अराजक तत्व भले ही चाहे वह आपके बीच का ही क्यों न हो हिंसक करके खत्म करा सकता है?
नहीं दोस्त, जन आंदोलन इतना कमजोर नहीं होता कि वह अराजक तत्वों की भेंट चढ़ जाए। सच तो यह है कि आंदोलन का चेहरा अपने आपको बनाने के फिराक में वहां जितने भी लोग जुटे थे, उनमें से टिकैत जैसे 2-4 किसान नेताओं को छोड़ दें, तो वे सब के सब केवल अपनी रोटियां सेकने का काम कर रहे थे… कहते हैं न की बहती गंगा में सभी हाथ धो लिया करते हैं वही हाल यहां का भी था।
जब तक आंदोलन में हरियाली तब तक सारा नेतृत्व हमारा, सारा श्रेय हमारा और जब आंदोलन संकट में तब हम हो गए आदर्श वादी! वाह सत्ता के दलालों..! वाह.!! बहुत सही!!!
जैसे बारात में एक आध शराबियों के उत्पात से न तो डीजे बंद होता है और न ही बारात लौटती है उसी प्रकार से आंदोलन में उपद्रवियों के शामिल हो जाने से आंदोलन नहीं रुकता और न ही नेतृत्व डरता है। बल्कि जरुरत पड़ने पर पुलिस की लाठी भी खाई जाती है और जेल भी भरे जाते हैं… यही होती है सच्ची नेतृत्व और सच्चा जन आंदोलन जिसे ‘टिकैत साहब’ ने कर दिखाया।
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युवा समाजसेवक,
राजनीति में सक्रिय