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world women’s day: पढ़ें वास्तविक नारीवाद को परिभाषित करती मिहिका श्रीवास्तव की कविता

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मिहिका श्रीवास्तव: वास्तविक नारीवाद
मुझे तलाश है ऐसी फेमिनिज़म की, जो बड़े वक्त से लापता है
शायद उन बड़े घरों की लड़कियों के ब्लॉग्स में कहीं छुप गया है
ये वो फेमिनिज़म नहीं जो हर मुद्दे को लड़का, लड़की में बांटता है
ये वो भी नहीं जो सिर्फ ब्लॉग्स, पोस्ट या सिर्फ स्टोरी तक ही सीमित रहता है
इसे देर रात तक ऑफिस में काम करने का कोई शौक नहीं
ये करता नहीं पापा और भाई के हर काम में दखलअंदाजी कभी
न इसे छोटे कपड़े पहनने का शौक है,
न ये गाली देने को कूल समझता है
और जो कह दो इससे अगर देर रात तक पार्टी करने को
तो ये कतराता भी बहुत है
ये पीरियड्स के बारे में बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं रखता
सिर्फ लड़की है इसलिए इज्जत मिले, इसे मुनासिब नहीं लगता
ये फॉर मोर शॉट्स से कम और थप्पड़ से ज्यादा प्रेरित था
पुराने ज़माने का है
रानी पद्मिनी, लक्ष्मीबाई, रजिया सुल्तान में जीवित था
इसे इज्जत की मांग तभी है, जब ये इज्जतदार काम करे
न सिर्फ ब्लॉग्स, कमेंट्स और पोस्ट को लिखे
मगर उन शब्दों पर अमल भी करे
ये वाला फेमिनिज़म अभी थोड़ा सा बाकी है
कभी ढूंढना इसे अपनी नानी, दादी या मां में
उनको लहज़ा है चलने, उठने, बोलने और बैठने का
उन्हें घर के कामों में कोई ऐतराज़ नहीं होता है
क्योंकि वो इसे अपनी बंदिश कम और ज़्यादा समझते मर्यादा हैं
ये नहीं चाहता किसी लड़के को नीचा दिखाना
शर्मीला भी है और है महत्वकांक्षी भी
इसलिए मांगता है ये सिर्फ नारी शक्ति
नारी सत्ता नहीं
ये पढ़े या न पढ़े, इसे अपनी कमज़ोरी नहीं मानता
अपने आत्मसम्मान और कर्तव्यों को आगे रख
सिर्फ अपने कर्मों को है सुधारता
इसकी खासियत ये है कि ये बोलता कम है
लड़का और लड़की दोनों में मिलता है
उन्हें अलग नहीं बल्कि जोड़कर रखता है
कभी मिल जाए ये फेमिनिज़म किसी गांव देहात में
तो मुझे जरूर बताना
वो क्या है न, मैं जानती हूँ ये खोया नहीं
बस इस जमाने में कोई चाहता नहीं इसके बारे में बताना
इसकी खासियत एक और है..
ये बहुत मॉडेस्ट है

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