
चार राज्य जीतने के बाद भी क्या है भाजपा के लिए चिंता का विषय

हाल ही में उत्तर प्रदेश और पंजाब सहित पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव संपन्न हुए। यह चुनाव परिणाम कुछ मायनों में अतीत में हुए चुनाव से अलग हैं और भारत की राजनीति को दूरगामी दृष्टि से प्रभावित करेंगे।
यहां पर इस बात को समझने के लिए उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और पंजाब राज्य के चुनाव परिणामों का विश्लेषण करना जरूरी है। एक तरफ उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी या उसके नेतृत्व में सरकार बनने जा रही है, वहीं दूसरी तरफ पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बन रही है। तरफ जहां भाजपा परंपरागत राजनीति का चरमोत्कर्ष है वहीं, दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी का पंजाब में सत्ता में आना गैर-परंपरागत राजनीति की शुरुआत का एक उदाहरण है।
सामान्यतः राजनीतिक दल चुनाव लड़ते समय तीन बातों को ध्यान में रखते हैं:
पहला, उस राज्य का क्षेत्रीय जातीय और सामाजिक समीकरण
दूसरा, विभिन्न दलों के प्रत्याशियों की स्थिति और तीसरा, राजनीतिक दल का संगठन और उसकी विचारधारा।
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी ने इन तीनों आधारों पर बहुत ही मजबूती और जोरदार तरीके से काम किया और परिणामों को अपने अनुकूल किया। इसके लिए भाजपा ने न केवल टिकट बंटवारा करते समय क्षेत्रीय, जातीय और सामाजिक समीकरण तथा अपने ‘कोर-वोट-बैंक’ पर ध्यान दिया और उन समीकरणों के अनुसार प्रत्याशियों का चयन किया बल्कि अपनी संगठन क्षमता और विचारधारा का भरपूर सदुपयोग किया और इसके बल पर जीत हासिल की। इस जीत के बावजूद उसके लिए आने वाला समय चिंता का विषय बन सकता है, जिसके आसार पंजाब चुनाव के परिणाम प्रकट कर रहे हैं।
जब जनता जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा, धनबल, बाहुबल, जोड़-तोड़ और प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग कर चुनाव जीतने की राजनीति से तंग हो जाती है और इस तरह की राजनीति करने वाले चाहे सत्ताधारी दल हो या विपक्षी दल हो, उनसे त्रस्त हो जाती है, तो वह वैकल्पिक राजनीति की तरफ उन्मुख होती है। जहां भी उसे यह विकल्प दिखाई देता है, वहां वह उस ओर मुड़ जाती है। आम आदमी पार्टी ने पहले दिल्ली में ही ऐसा ही विकल्प उपलब्ध कराने का प्रयास किया था, जिसके परिणाम स्वरूप दिल्ली में उसकी सरकार बनी। आम आदमी पार्टी की सरकार को सत्ता से बाहर करने के लिए दिल्ली विधानसभा के पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने ‘एनआरसी’ से लेकर के भारत-पाकिस्तान तथा अन्य धार्मिक और जातीय मुद्दों को उछाला लेकिन वह आम आदमी पार्टी से पुनः बुरी तरह परास्त हुई थी।
आम आदमी पार्टी के उभार से राष्ट्रीय स्तर पर एक नए प्रकार की राजनीति जन्म लेगी। अभी तक आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय राजनीति में बहुत अधिक महत्व नहीं दिया जाता था। बहुत कम अवसर थे, जहां पर विपक्षी खेमे की लामबंदी में आम आदमी पार्टी को जगह दी गई थी। लेकिन दिल्ली के बाद पंजाब में चुनाव जीतने के पश्चात जब भी विपक्षी एकता की बात होगी, तो उसमें आम आदमी पार्टी की अनदेखी नहीं की जा सकती है और यह भी संभव है कि जिस तरह से कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी का पराभव हो रहा है आने वाले समय में विपक्षी एकता की जब निर्मित होगी, उसमें आम आदमी पार्टी के अनदेखी नहीं की जा सकेगी। यद्यपि आम आदमी पार्टी ने उत्तर प्रदेश सहित गोवा में भी चुनाव प्रचार में कूदी है। उत्तर प्रदेश में उसे वो सफलता नहीं मिल पाई है जबकि गोवा में उसको 2 सीटें ही मिली हैं। लेकिन यह उभार उसे आने वाले समय में राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती प्रदान करेगा।
पंजाब में आम आदमी पार्टी सत्ता में आना यह प्रकट करता है कि जनता परंपरागत राजनीति से उब गई है और उससे एक नई वैकल्पिक राजनीति की ओर देख रही है, अन्यथा 136 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी को एक ऐसे राजनीतिक दल जिसकी उम्र अभी 10 साल भी नहीं हुई है। वह कांग्रेस को सत्ता से बाहर नहीं कर देती। आम आदमी पार्टी ने अपने अल्पकालीन जीवन में ही कांग्रेस की बराबरी कर ली है। एक तरफ जहां दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की सरकार केवल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बची है यह अलग बात है कि महाराष्ट्र में वह गठबंधन की सरकार में शामिल है।

अनिल सिंह
निदेशक, सेंटर फॉर एडमिनिस्ट्रेशन एंड गवर्नेन्स,
सिविल सेवा, आईएएस / pcs