वाशिंगटन : (Washington) प्रमुख अमेरिकी निवेश कंपनी ‘एजाेरिया’ के संस्थापक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) और पूर्व में सरकारी दक्षता विभाग (Department of Government Efficiency) (DOGE),में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जेम्स फिशबैक (James Fischbach) ने “एच-1 बी वीज़ा कार्यक्रम ” काे ‘बड़ा धाेखा’ करार देते हुए इसकी कड़ी निंदा की है। उन्हाेंने उन कंपनियों की भी आलोचना की है जो ‘अमेरिकी प्रतिभाओं’ काे छाेड़कर विदेशी कर्मचारियों की नियुक्ति करती हैं।
फिशबैक ने आरोप लगाया कि भारत से “सस्ते श्रमिकों” (cheap labor) को नियुक्त करने से योग्य अमेरिकी कामगारों का शोषण होता है, जिससे उन्हें नौकरी के अवसर नहीं मिलते । इसके साथ ही इस कार्यक्रम से विदेशी श्रमिकों का भी शोषण भी होता है।
सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में, फ़िशबैक ने लिखा, “तथाकथित अमेरिकी कंपनियाँ कहती हैं कि उनके पास एच-1 बी कार्यक्रम का उपयोग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि उन्हें इन नौकरियों के लिए अमेरिकी नहीं मिल रहे हैं।” फ़िशबैक के अनुसार, वर्तमान भर्ती प्रक्रियाएँ नौकरी के विज्ञापनों को अस्पष्ट करके और विदेशी कर्मचारियों (foreign worker) को प्राथमिकता देकर अमेरिकी कर्मचारियों की उपेक्षा करती हैं।
उन्हाेंने कहा, “यह एक कड़वी सच्चाई है। वे अमेरिकियों की तलाश ही नहीं कर रहे हैं। वे उनका साक्षात्कार लेने से इनकार करते हैं। वे “बॉक्स चेक” करने के लिए अस्पष्ट समाचार पत्रों में नौकरी के विज्ञापन छिपाते हैं, और जब कोई “आवेदन” नहीं करता है, तो वे एक और विदेशी कर्मचारी को आयात करते हैं। एक और योग्य अमेरिकी को नौकरी, वेतन और इन दोनों के साथ आने वाले सम्मान और उद्देश्य से वंचित करते हैं। यह शर्मनाक है। अब समय आ गया है कि एच-1 बी घोटाले को पूरी तरह से खत्म किया जाए।”
फिशबैक की यह टिप्पणी ट्रम्प प्रशासन (Trump administration) द्वारा एच-1बी वीज़ा आवेदनों के लिए शुल्क बढ़ाकर एक लाख डालर करने की घाेषणा के कुछ हफ़्तों बाद आई है। यह कार्यक्रम विशेषताैर पर विदेशी कर्मचारियों के लिए सालाना 65,000 वीज़ा प्रदान करता है, जिनका उपयोग मुख्य रूप से तकनीकी कंपनियाँ करती हैं।
एच-1बी वीज़ा के सबसे बड़े प्राप्तकर्ता भारतीय हैं, जिनका वित्त वर्ष 2024 में स्वीकृत कुल आवेदनों में 70% से अधिक हिस्सा है। इस बीच अपने पाेस्ट में फिशबैक ने दावा किया कि अमेरिका में भारतीय कामगारों का भी शोषण हो रहा है।
उन्होंने कहा, “भारतीय और चीनी सोचते हैं कि वे बेहतर स्थिति में हैं, लेकिन अंततः उनका भी शोषण होता है। हालाँकि मुझे उनसे कोई सहानुभूति नहीं है, क्योंकि वे अमेरिकी नागरिकों को दोयम दर्जा देने और हमारे साथ अपने ही देश में गुलामों जैसा व्यवहार करने में मुख्य रूप से भागीदार हैं।”
फिशबैक ने आराेप लगाया कि भारत से सस्ते विदेशी श्रमिक लाने से कंपनियों की स्थिति बेहतर नहीं होती, बल्कि जो कर्मचारी अमेरिका में योग्य नौकरियों के हकदार हैं, उनकी स्थिति और भी बदतर है क्योंकि उनके पास उस कंपनी में काम करने और उस सहायता को प्राप्त करने के लिए आय अर्जित करने का अवसर नहीं है।
कानूनी आव्रजन की धारणा को अस्वीकार करते हुए, फिशबैक ने इसके पूर्ण “स्थगन” की माँग की और ज़ोर देकर कहा कि देश के नागरिकों में प्रतिभा और क्षमता मौजूद है।
उन्हाेंने कहा “मुझसे अक्सर पूछा जाता है, “क्या आप कानूनी आव्रजन का समर्थन करते हैं? ऐसा आव्रजन जो अमेरिका को बढ़ने में मदद करे?” और यह सुनने में अच्छा लगता है। सचमुच करता भी है। यह उचित, उदार, यहाँ तक कि देशभक्तिपूर्ण भी लगता है। लेकिन सच यह है कि मैं ऐसा नहीं मानता। मैं पूर्ण रूप से ‘आव्रजन राेक’ (immigration moratorium) का समर्थन करता हूँ। क्योंकि अमेरिका को खास बनाने वाली चीज़ वह नहीं है जिसे हम आयात करते हैं—बल्कि वह है जो हमारे पास पहले से ही है।”
उन्होंने कहा, “यह देश प्रतिभा, साहस और प्रतिभा से भरपूर है। लाखों अमेरिकी कम रोज़गार, कम वेतन या उपेक्षित हैं। हालांकि वे कड़ी मेहनत और योगदान देने के लिए उत्सुक हैं।”
