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सोल्जेनित्सिन का प्रतिरोध-पत्र

सोवियत लेखक संघ से निष्कासन पर नोबेल विजेता रूसी उपन्यासकार, इतिहासकार व आलोचक सोल्जेनित्सिन द्वारा लिखा गया यह प्रतिरोध-पत्र उनकी उदात्त लेखकीय चेतना का परिचय देता है।

हम मानवीयता के लिए हैं

13 नवम्बर, 1969

महाशय
निहायत बेशर्मी के साथ तुमने अपने ही नियमों को पैरों तले रौंदते हुए मुझे लेखक-संघ से निष्कासित कर दिया। ऐसी हड़बड़ी में जैसे कही से ख़तरे की घंटी बजी हो। यहां तक कि मुझे तार द्वारा भी सूचित नहीं किया। मुझे चार घंटे की मोहलत दिए बिना, जिसमें में रियाज से चल कर मीटिंग में उपस्थित हो सकता… तुमने खुलकर प्रकट कर दिया है कि मुझ पर बहस बाद में हुई, फ़ैसला पहले हुआ।

क्या यह शर्मनाक नहीं कि मुझ पर मेरी अनुपस्थिति में आरोप लगाए गए। क्या मुझे अपने बचाव में कुछ बोलने के लिए दस मिनट देने से आप डरे हुए थे।

उन दस मिनटों की भरपाई में अपने इस पत्र से कर रहा हूं। आप अपनी घड़ियों से धूल पोंछ डालें, जो समय से बहुत पीछे चल रही हैं। अपनी आंखों पर पड़े भारी परदे हटा दें, जो आपको इतना प्रिय है। आपको यह भी पता नहीं कि दिन हो चुका है। अब वह समय नहीं, जब आपने इसी गुलाम तरीके से अख्मातोवा को निष्कासित किया था। वह धूमिल और कायर वक्त भी नहीं, जब अपने बोरिस पास्तरनाक को गालियां देते हुए निकाला था… वह दिन दूर नहीं, जब आपमें से हर कोई मेरे निष्कासन प्रस्ताव से अपने दस्तखत मिटा देना चाहेगा।

अंधों के रहनुमा अंधे! आप नहीं देख पा रहे हैं कि आप उसी दिशा में मुड़ रहे है, जिसकी कभी आपने घोर निंदा की थी। संकट के इस समय में, जब समाज बुरी तरह बीमार है, आप कुछ भी सकारात्मक सिखाने में अक्षम हो चुके हैं। सिवा नफ़रत, जासूसी और गिरफ्तारियों के। आपके गंदे और लफ़्फ़ाज लेखों का कहीं कोई असर नहीं। आपके बीमार दिमाग ठीक से काम नहीं करते। आपके पास कोई तर्क नहीं, सिर्फ़ वोट देने का अधिकार और प्रशासन है। यही कारण है कि आपमें से किसी को शोलोखोव को लीडिया चुकोवस्काया के प्रसिद्ध पत्र का उत्तर देने की हिम्मत नहीं हुई, लेकिन अब उसके लिए भी प्रशासन के जबड़े खुल रहे हैं। वह किसी को भी अपना उपन्यास ‘द डेज़र्ट हाउस’ पढ़ने को कैसे दे सकती थी, जो कि छपा ही नहीं अगर अधिकारी किसी की किताब को प्रकाशित होने की इजाजत नहीं देते तो यही हो सकता है कि वह घुटता रहे, अस्तित्वहीन होकर रहे, लेकिन अपना लिखा किसी को पढ़ने को न दे। अब आप लेव कोपलेव को भी निष्कासित करने की धमकी दे रहे है, जिसने निरपराध, दस वर्ष जिन कैंपों में काटे। लेकिन आपकी निगाह में वह एक अपराधी है, क्योंकि वह पीड़ितो के पक्ष में आवाज उठाता है, क्योंकि उसने एक सरकारी भेद खोल दिया है। एक बड़ी हस्ती के साथ हुई अपनी बातचीत को सार्वजनिक कर दिया है। लेकिन आप ऐसी ‘गुप्त सभाएं करते ही क्यों हैं, जिन्हें आम जनों की नजरों से छिपाना पड़ता है? दुश्मन सुन रहा है, आपका यह एक आजमाया हुआ बहाना है। ‘सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी दुश्मन आपके सारे क्रिया-कलापों और अस्तित्व के लिए जरूरी हो चुका है। क्या हमने पचास साल पहले व्रत नहीं लिया था कि गोपनीय राजनीति गोपनीय सभाएं, गोपनीय नियुक्तियां या गोपनीय तबादले नहीं किए जाएंगे और हर चीज को आम जनों के बीच बहस के लिए लाया जाएगा।

जैसे जब हमने ‘कुछ भी नहीं छिपाया जाएगा’ की प्रतिज्ञा की, उस समय हमारा कोई दुश्मन नहीं था। जब हमने खुलेपन की घोषणा की थी… लेकिन बिना शत्रुओं के आप जी नहीं सकते। एक तेजाबी नफरत, तुम्हारा बांझ वातावरण बन चुकी है।

समय आ चुका है कि हम सबसे पहले समझे कि हम ‘मानवीयता के लिए है। मनुष्य पशुओं में एक ही अंतर होता है? मनुष्य सोधता और बोलता है। खुलापन संपूर्ण हर समाज के स्वास्थ्य की पहली हर्त होती है, जिन्हें देशहित में खुलापन स्वीकार उन्हें सिर्फ अपने स्वार्थ की चिंता है। जो खुलेपन के पक्ष में नहीं, वे देश की रुग्णा इलाज न होने देकर इसे और भी सड़न की ओर धकेल रहे हैं।

सोल्जेनित्सिन

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