India Ground Report

सार्त्र के नाम सिमोन का पत्र

पेरिस विश्वविद्यालय में सिमोन की मुलाकात ज्या पाल सार्त्रे से हुई – सार्त्रे, फ्रांसीसी दार्शनिक, नाटककार, लेखक। जल्द ही वे दोनों एक-दूसरे की प्रतिभा के कायल हो गए। अक्टूबर 1929 का कोई दिन था, जब सार्त्रे का विवाह प्रस्ताव सिमोन ने ठुकरा दिया। आश्चर्य था कि सार्त्रे को कुछ भी अजीब नहीं लगा। आजीवन चले इस बौद्धिक और हार्दिक संबंध में ‘शब्दों के सेतु’ बीच में बिखरे रहे।

मैं पागल हो रही हूं….

होटल ड्यू शॉवल ब्लेंस
स्पॉटुअर कोरेजे

सोमवार, 1938

मेरे प्रेम,
…. यह होटल बहुत कुछ उस होटल जैसा है जिसमें हमने उजेरचे में खाना खाया था। वही, जहां तुम मेरे लिए पानी में टॉफियां फेंकने वाले थे… बस इसीलिए यहां रुकी हूं। सफ़र के बारे में सुनो। ट्रेन में एक झपकी लगी और मैं पागलों की तरह ‘यहां कैसे…यहां कैसे…’ कहते हुए जाग पड़ी। सोई तो ऊपर थी पर जब जागी तब खुद को फर्श पर पाया… उसके बाद तो नींद जो उड़ी तो माउंटल्यूकन के बाद कहीं जाकर बमुश्किल आ पाई। मौरिएक से एक घंटे पहले मुझे भोर के मद्धिम प्रकाश ने जगा दिया। खिड़की के बाहर देखा, एक छोटा-सा गांव… मैंने सिर खिड़की से बाहर निकाल लिया। आसमान अबतक तारों से भरा था। इसमें मधुर गुनगुनाहट थी। यह आनंदमय क्षण था…. मैंने उभरते हुए सूर्य को देखा। उस सुंदर दृश्य पर फैलती हुई भोर को देखा।

साढ़े पांच बजे मैं मौरिएक पहुंची। आसमान साफ… कस्बे में यूं ही आवारगी में घूमती रही। खूबसूरत सा रोमन चर्च देखा… ऊंची पहाड़ियां देखीं। सात बजे जो बस पकड़ी, वो हर दस मीटर पर रुकते-रुकाते बीस मील की दूरी पूरे दो घंटे में तय कर पाई। लोग खीझ से पगला रहे थे पर इसका कोई फायदा नहीं होने वाला था। अंत में एक गांव पहुंची। मैं तुरंत ही सड़क और जंगल के रास्ते बड़े-बड़े पर्वतों की ओर चल पड़ी। जितना ऊपर चढ़ रही थी, कोहरा उतना ही घना होता जा रहा था। कानटाल… सबसे ऊंची पहाड़ी… चारों ओर कोहरे का घना समुद्र… मोटरचालकों का एक ठिठुरता हुआ परिवार छोटे से आसरे में सिमटा खड़ा था। सड़कें जाम हो चुकी थीं। मैं एकदम खुली हुई …. जंगली… ऐसे सुंदर मौसम में यह सब बहुत आकर्षक लग रहा था पर ठंड जबर्दस्त थी। पहाड़ों में खोए रहने का विचार त्यागकर मुझे नीचे उतर जाना ठीक लगा। पांच बजे के आस-पास जैसे ही मौसम में चमक आई मैं अड़ियल-सी फिर चल पड़ी। पास लेकर घाटी की ओर जाना चाहती थी, वहां पहुंचने में दो घंटे से ज्यादा वक्त नहीं लगने वाला था, लेकिन पास नहीं बन पाया। कोहरा गहराने लगा और मुझे नीचे लोटना पड़ा। रास्ते भर सोचती रही कि मैं पागल हो रही हूं…।

आज मौसम बढ़िया था। जिस बस में बैठी वो सुंदर घाटियों से होते हुए ऑरिलेक फिर दूसरी बस से अरगेंटाट तक… सुबह 10 बजे लंच लिया। कस्बे में मेला लगा था। बहुत मजा आया। स्त्रीसुलभ असुरक्षाओं के बावजूद मुझे खुद पर गर्व है। सुबह 11 से शाम के 8 बजे तक खूब चली हूं, वो भी बिना थकान महसूस किए। यहां बस आधा घंटा पहले ही पहुंची हूं और अब बिस्तर में घुसने से पहले तुम्हें चिट्ठी लिख रही। बहुत मजा आ रहा है। मेरे प्यार, दिनभर तुम्हारा ख़याल मेरे साथ रहा, लेकिन उन खयालों को तुम्हारे साथ शेयर नहीं कर सकती, इतनी थकी हुई जो हूं। शनिवार तक के लिए – ढेर सारा प्यार… ।

तुम्हारी मोहिनी बोउवार

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