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Shimla : जेल नहीं जमानत’ को लागू न करने पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
हिमाचल के गृह सचिव को किया तलब

शिमला : मानव स्वतंत्रता से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा संज्ञान लिया है। ‘जेल नहीं जमानत’ पर दिए गए अपने फैसले को लागू न करने पर अदालत ने कड़़ा रुख अपनाया है। अदालत ने गिरफ्तारी, रिमांड, जेल और बेल के संबंध में स्थायी आदेश जारी न करने पर हिमाचल के गृह सचिव को तलब किया है। मामले की सुनवाई 2 मई को निर्धारित की गई है। सुनवाई के दौरान हिमाचल सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि फैसले की आंशिक अनुपालना कर दी गई है। फैसले के अनुसार गिरफ्तारी, रिमांड, जेल और बेल के संबंध में स्थायी आदेश जारी करना अभी बाकी है। अदालत ने पाया कि हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, तमिलनाडु और पुडुचेरी ने इस बारे में कोई स्थायी आदेश पारित नहीं किया है।अदालत ने सभी राज्यों को आदेश दिए कि तीन हफ्ते में जरूरी स्थायी आदेश जारी करें। अदालत ने चेताया है कि यदि अदालत के आदेशों की अनुपालना में कोताही बरती गई तो राज्य के गृह सचिव अदालत के समक्ष पेश हों। शीर्ष अदालत ने अपने निर्णय में कहा था कि भारत की जेलों में विचाराधीन कैदियों की भरमार है। आंकड़ों से पता चलता है कि जेलों के दो तिहाई से अधिक विचाराधीन कैदी हैं। इनमें अधिकांश को संज्ञेय अपराध (सात साल या उससे कम के लिए दंडनीय अपराधों का आरोप) के पंजीकरण के बावजूद गिरफ्तार करने की आवश्यकता नहीं हो सकती है।अदालत ने जेल नहीं जमानत नियम के महत्व पर जोर देते हुए अनावश्यक गिरफ्तारी और रिमांड को रोकने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए थे। गिरफ्तारी के संबंध में अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41ए के प्रावधानों की अनुपालना करने के लिए सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को स्थायी आदेश पारित करने के आदेश दिए थे। अदालत ने पाया था कि इससे निश्चित रूप से न केवल अनुचित गिरफ्तारियां कम होंगी, बल्कि विभिन्न न्यायालयों के समक्ष जमानत की अर्जियों की संख्या भी कम होंगी। शीर्ष अदालत ने जमानत की अर्जी को दो सप्ताह में और अग्रिम जमानत की अर्जी को छह सप्ताह में निपटाए जाने को कहा था।
भारत की जेलों में विचाराधीन कैदियों की भरमार

रिमांड को रोकने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए
-तीन हफ्ते में जरूरी स्थायी आदेश जारी करें
-राज्य के गृह सचिव अदालत के समक्ष पेश हों

अदालत ने कहा था कि आपराधिक मामलों में दोष सिद्धि की दर बहुत कम है और लगातार हिरासत में रहने के बाद किसी का बरी होना बेहद अन्याय की बात है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि अदालतों को जनता की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए। अदालत ने सभी हाईकोर्ट से कहा है कि जमानत की शर्त पूरी करने में असमर्थ विचाराधीन कैदियों का पता लगाकर, उन्हें जल्द राहत दी जाए। अदालत ने कहा था कि जेल और जमानत के लिए दंड प्रक्रिया संहिता का कानून अंग्रेजों के समय में बना था। लेकिन आजादी के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों को यह अहसास नहीं होना चाहिए कि वे पुलिस राज्य में रह रहे हैं। अदालत ने ब्रिटेन का जिक्र करते हुए केंद्र सरकार से जमानत के लिए अलग से कानून बनाने पर विचार करने का सुझाव दिया था।

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