
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
विशाल पांडेय
यह कविता तो आप सब ने ना जाने कितनी बार सुनी होगी और जितनी बार भी सुनी होगी, उतनी बार यह कविता आपको जोश से भर देती होगी… हम आज बात कर रहे हैं महान लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान की, जिनकी रचनाएं जीवन को नई दिशा देती हैं।
सुभद्रा कुमारी चौहान ने न केवल वीर रस की कविता लिखी, बल्कि जो बातें इस कविता में लिखी गईं, उसे उन्होंने अपने जीवन में भी उतारा। आंखो में आजाद भारत का स्वप्न लिए वे महात्मा गांधी के पीछे चल पड़ी।
आज ही के दिन 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद के निकट निहालपुर गांव में रामनाथ सिंह के यहां सुभद्रा कुमारी का जन्म हुआ था। उनके पिता जमींदार थे। पिता रामनाथ शिक्षा प्रेमी थे और उन्ही के देख रेख में उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी हुई। इसके चलते सुभद्रा को बचपन से ही कविताओं में रुचि बन गयी। वे बाल्यकाल से ही कविताओं की रचना भी करने लगी थीं। उनके चार बहनें दो भाई थे।
सुभद्रा कुमारी चौहान बाल्यकाल से ही पढ़ने-लिखने में होशियार थी। उनकी पहली कविता 9 साल की उम्र में प्रकाशित हुई, जिसे उन्होंने एक नीम के पेड़ के नीचे लिखी थी। स्कूल में अध्यापकों की प्रिय होने के साथ अपने सहपाठियों की भी प्रिय थी। बचपन से ही जो कविताएं लिखने का सिलसिला चला था वो उनके साथ हमेशा ही चलता गया। आज 16 अगस्त के दिन सुभद्रा कुमारी की 117 वीं जयंती है। आज के दिन गूगल ने उनकी जयंती पर उनकी याद में डूडल बनाकर उन्हें याद किया है। सुभद्रा चौहान के बारे में जितना लिखा जाए उतना कम है। यह एक आदर्श महिला होने के साथ साथ एक आदर्श पत्नी, ममतालू मां, देश प्रेमी, बहादुर व निडर थी। उन्होंने अपनी कविताओं से दुनियाभर के करोडों लोगों को प्रेरणा दी है। सुभद्रा का जीवन हमेशा संघर्ष से भरा रहा है। उन्होंने अपने जीवनकाल में ही अपने आप को एक कवयित्री के रूप में और एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में खुद को ढाल लिया था।
असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली पहली महिला
सुभद्रा कुमारी चौहान का विवाह खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह के साथ हुआ था। शादी के बाद वे इलाहबाद छोड़ वर्ष 1919 में जबलपुर रहने आ गई। वहां 1921 में महत्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन में शामिल हो गई। वह अहसयोग आंदोलन में भाग लेने वाली प्रथम महिला थी। उन्हे दो बार जेल भी जाना पड़ा था। वह नागपुर की अदालत में गिरफ्तार होने वाली प्रथम सत्याग्रही महिला भी थी। 15 फरवरी 1948 को महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की एक कार दुर्घटना में मौत हो गई।
सुभद्रा की रचनाओं में स्वतंत्रता आंदोलन
उनकी कविताएं हमारे देश की आजादी के आंदोलन का स्पष्ट रूप से बखान करती हैं। जिनमे प्रमुख कविताएं,वीरों का कैसा हो बसंत,राखी की चुनौती और विदा शामिल हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखी कविताओं और गीतों ने कई युवाओं को भारतीय स्वतंत्रता में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
स्वदेश के प्रति
आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ,
स्वागत करती हूँ तेरा।
तुझे देखकर आज हो रहा,
दूना प्रमुदित मन मेरा॥
आ, उस बालक के समान
जो है गुरुता का अधिकारी।
आ, उस युवक-वीर सा जिसको
विपदाएं ही हैं प्यारी॥
आ, उस सेवक के समान तू
विनय-शील अनुगामी सा।
अथवा आ तू युद्ध-क्षेत्र में
कीर्ति-ध्वजा का स्वामी सा॥
आशा की सूखी लतिकाएं
तुझको पा, फिर लहराईं।
अत्याचारी की कृतियों को
निर्भयता से दरसाईं॥