India Ground Report

सरगोशियां : मेरा गांव जिंदा है

मेरा गांव जिंदा है….चबूतरे पर बिछी खाट तोड़ती बूढी जिस्म में, जो अतीत के पुराने करघे पर हर रोज बुनती है खुशरंग यादों की कतरन… दरवाजों के दरीचे से झांकती उन जवान आँखों में, जिनके काजल विरह वेदना की सरिता में ना जाने कब का बहकर सूख चुके हैं…मेरा गांव जिंदा है. शायद उनके इंतेज़ार में जो बस चुके हैं दूर कहीं किसी शहर में और चले गये हैं लेकर अपने साथ उसका बांकपन. …शायद उनके इंतज़ार में जो दो जून की रोटी के लिये जद्दोजहद कर रहे हैं शहरी ज़िंदगी से और छोड़ गये हैं खाली पगडंडी और वीरान बगीचा. चौपालें अब दुआ-सलाम नहीं करती. बच्चे कंकड़ों से नहीं खेलते. बूढ़ा बरगद छांव नहीं देता. मटर की खेत अब रातों में जागती नहीं हैं. न पड़ोसी है, न भाई है, न नाते हैं, न रिश्ते हैं. अपने घर में ही घुट-घुट कर जी रहा है मेरा गांव..मेरा गांव जिंदा है….बस जिंदा.
खैर दिल बहलाने के लिये कैफ़ी साहब का ये शेर पढ़ लीजिये…
महक खुलूस की इस संदली गुबार में है,
मोहब्बत आज भी जिंदा मेरे दयार में है.

Exit mobile version