India Ground Report

सरगोशियां : लाजो की दुनिया

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मां अकसर उसे बाहर अकेले जाने से रोकती
” लाजो कहा जा रही है? रूबी को साथ ले ले। कितनी बार कहा है कि अकेले बाहर न जाया कर।
“क्या मां? क्या अकेले पैखाने भी नहीं जा सकती अब ? हर वक्त रोक टोक , यहां मत जा वहां मत जा, लाजो ये मत पहन , वो मत खा , क्या करू मैं? कभी तो मुझे जिंदगी मेरे तरीके से जीने दे।
” मां सुन ना! ऐ मां सुन तो सही , बस एक बार फिर कभी नहीं कहूंगी कही जाने के लिए। लाजो ने बड़े ही लाडवाले तरीके से मां को मानने की कोशिश की।”

कितनी बार कहा तुझे लाजो! कि कहीं जाने को छोड़कर कोई भी बात कहेगी सब सुनूंगी।
पर तू कहीं जाने की बात मत किया कर।
लाजो आज १७ साल की हो गईं है, पर आज तक उसको ये समझ नहीं आया कि मां उसे अकेले क्यूं कही नहीं जाने देती। उसकी कितनी सहेलियां है, उनके घर से तो इतनी पाबंदियां नहीं हैं, तो अकेले उसके साथ ही क्यूं?
जब वह छोटी थी, तबसे ये सवाल उसके जेहन में घूम रहा है।
आज लाजो ने तय कर लिया कि आज मां से पूछ कर ही रहेगी।

“लाजो, ओ लाजो कहां गई? खाना नहीं खायेगी क्या? क्या हुआ आज खाना खाने नहीं आई, सुबह की बात को लेकर अभी तक नाराज हैं क्या?”
” क्या हुआ कुछ तो बोल ?”
लाजो को जैसे सुनाई ही नहीं दे रहा था। गुप चुप सी बस बैठी थी।
मां ने आकर अचानक हिलाकर बोला, “लाजो ओ लाजो, क्या हुआ? बहरी हो गई क्या?

” मां तुम मुझे कहीं जाने क्यों नहीं देती? अभी तक क्या मैं बच्ची हूं? मेरी सारी सहेलियां जा रही है सिर्फ एक मैं ही हूं जो कि नहीं जा रही।
मां अचानक उठ कर जाने लगी।
” नहीं मां, लाजो ने मां का हाथ पकड़ लिया, आज आपको बताना ही होगा कि आप मुझे अकेले क्यूं कहीं नहीं जाने देती?

उस दिन मां के लाख मना करने पर भी लाजो ने उनकी एक न सुनी, और जिद पकड़ कर बैठी रही। आखिर थक हारकर मां ने उसे वह राज बता दिया, जिसे उसने लाजो से इतने सालों से छुपाया था।
” लाजो तुझे तो पता है ना बेटी! कि तेरी जिंदगी आम लड़कियों जैसी नहीं है। आज तुझे मैं उन लोगों की सच्चाई बताती हूं, पर मुझे यकीन है कि तू मेरी बात को समझेगी। और मां ने कहना शुरू किया…

“लाजो ! ये किन्नर समाज हमारे समाज से थोड़ा अलग होता है। ये लोग होते तो हम जैसे ही हैं पर थोड़ा अलग! तू समझ रही है ना बेटी, मां उसे समझा नहीं पा रही थी।
उसे शब्द नहीं मिल पा रहे थे, कि कैसे बताए वो लाजो को। और मन में एक डर वो अलग ही था, कि कहीं लाजो कुछ और ही न समझ बैठे, जिस डर को वह लाजो से छुपाती आई है, कहीं वहीं डर उसे उसकी हंसती खेलती बच्ची को अंदर से झकझोर कर ना रख दे।

“बता ना मां, लाजो ने फिर जिद भरी आवाज में बोला।”
मां ने बताना शुरू किया…
“लाजो जब तुम पैदा हुई थी! और मां अचानक फ्लैशबैक में चली गई…

” नहीं, नहीं हम ऐसी बेटी को यहां नहीं रख सकते। यह हमारे समाज के खिलाफ है। यह यहां कैसे रह सकती है? अचानक सब के सब बोल उठे थे जब उन्हें पता चला कि लाजो सामान्य बच्ची ना होकर एक किन्नर है।
मुन्ना की मां मैं तो कहता हूं इसे आज ही किन्नर समाज को दे देते हैं। जो कल करना है वो आज ही कर लेते है। कल को ये बड़ी होगी और हमारा स्नेह इससे और जुड़ जायेगा। तब बहुत तकलीफ होगी।अचानक लाजो के पिता के मुंह से ये बात सुनकर लाजो की मां स्तब्ध रह गई।

एक पिता आखिर कैसे कह सकता है इतना भयावह शब्द?
लाजो की मां ने मन ही मन फैसला कर लिया था। कि वह यह रीति तोड़ कर ही रहेगी। और अपने बेटी को और बेटियों जैसा ही पालेगी।

“लाजो की मां तू बहुत पछताएगी मेरी बात ना मानकर, जिस दिन ये किन्नर समाज उठा ले जाएगा तेरी बेटी को, फिर किस्मत को कोसते हुए बैठना।
” नहीं , नहीं, मैं अपनी बेटी का पालन ऐसे करूंगी कि किसीको भी इसके किन्नर होने का पता नहीं चलेगा।
अचानक माहौल एक दम खामोश हो गया, लाजो ने लंबी सांस ली और उठकर खाना खाने रसोईघर में चली गई।

मां ने सोचा शायद लाजो उसाकी बात समझ गई है लेकिन उस दिन से लाजो में बहुत बदलाव हुए वो सबसे अलग थे। साधारण लड़कियों की तरह रहने वाली लाजो ने अचानक चूड़ियां, बड़ी सी बिंदी और ढेर सारा मेक अप करने सीख लिया। सबसे अलग अलग रहने लगी। टीवी पर भी हमेशा किन्नरों के ही कार्यक्रम देखने लगी। अचानक से उसमें किन्नरों के प्रति रुचि जाग गई।
अपनी सहेलियों से भी किन्नरों के बारे में बात करती।
और अकसर सहेलियां भी कहती कि किन्नरों की दुनिया अलग होती है, वो हमारे समाज का हिस्सा नहीं होते, हमारा समाज उन्हें हमारे साथ नहीं रहने देता।

आखिरकार मां के मन का डर सामने आ गया, एक दिन रात के अंधेरे में लाजो न जाने कहां चली गई। शायद उसे अपनी जिंदगी के हकीकत का पता चल चुका था। उफ्फ ये समाज!

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