
नारी शब्द आते ही सबसे पहले नजरों के सामने एक ऐसा चहरा उभर जाता है जिसका वर्णन किया ही नहीं जा सकता। एक कोमल शरीरवाली, सुंदर नैन नक्श, अपने हंसी से पूरी दुनिया को मोह लेने वाली,एक ऐसा चरित्र जो हर रूप में अपनी अलग पहचान छोड़ती है। नारी को जब बनाया गया तो न जाने किस मिट्टी का इस्तेमाल किया गया। कोई कहता है कुलटा है, कोई चरित्रहीन, कोई देवी, तो कोई माता के रूप में पूजा करता है। पर आज तक शायद बनाने वाले ने भी नारी मन को नहीं जाना। बाते छिपाए तो श्राप मिला। बातें बताए तो लोगों ने मंथरा और कैकेई कहकर पुकारा।
आज तक यही परंपरा चली आ रही है, चाहे परिवार हो, समाज हो या गीत संगीत कही भी इनका नाम सिर्फ और सिर्फ नकारात्मकता के साथ जोड़ा जाता है। “क्या बिना कैकई के राम का वन में जाना संभव था? अगर कुंती ने पहले ही कर्ण की सच्चाई बता दी होती तो हमें महाभारत में कर्ण का अलग व्यक्तित्व देखने को मिलता? अगर मंथरा न होती तो शायद राम का भी अस्तित्व न होता एक हद तक।
तो फिर कौन है ये लोग, जो समय समय पर नारी का चरित्र चित्रण करते रहते हैं? और क्यूं? ” क्या बिना नारी के जीवन संभव है?” एक ऐसा क्षेत्र नहीं जहां नारी ने कदम न रखा हो,! चाहे विज्ञान हो, सेना या शिक्षा हर जगह नारी ने अपना परचम लहराया है। परम पिता परमात्मा या कहे श्रृष्टि ने नारी को एक पुरुष के मुकाबले कहीं ज्यादा सशक्त बनाया है। कौन सा ऐसा कार्य है, जो एक नारी नहीं कर सकती फिर क्यों उसे कमजोर बनाया जाता है? एक नारी को ही दूसरे नारी का दुश्मन बनाया जाता है। पर कौन हैं ये लोग जो एक नारी का चरित्र चित्रण करते हैं? और किस अधिकार से? एक नारी, जिससे पुरुष जन्म लेता है, फिर वही पुरुष आगे चलकर उसे कमजोर क्यूं कर देता है ? किस अभिमान में? क्या वह ये भूल जाता है कि उसे धरती पर लाने में जितना एक पुरुष का हाथ होता है, उससे कहीं ज्यादा एक स्त्री का होता है। फिर किस बात का गुमान है इन पुरुषों को? क्यूं समय समय पर एक नारी को ही अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है?
क्यूं सारे नियम बस स्त्रियों के लिए हैं?
एक नारी चाहे किसी भी रूप में हो वह पुरुष पर भारी ही रहती है। एक मां से बेटी, बहन, बहु, पत्नी, सास हर चरित्र को वह अपने क्षमता से निभाती है। बस कमजोर हो जाती है, उस पुरुष के सामने, जिसके सामने उसने अपना सर्वस्व लूटा दिया हो। जब एक पुरुष बेटा बनकर उसे ठुकरा देता है, जब एक पुरुष पति बनकर उसे ठुकरा देता है और जब एक प्रेमी बनकर ठुकरा देता है।
आखिर कब तक सबल होते हुए भी नारी निर्बल बनी रहेगी इस पुरुष समाज में।
नारी सब पीड़ा सह लेती है। नारी में इतनी शक्ति है कि वह एक या दो नहीं ना जाने कितने राम, कृष्ण, परशुराम, रावण, कंस, दशरथ, टाटा, विरला, मोदी, योगी पैदा कर सकती है।
उसकी ये पीड़ा सिवाय उसके कोई नहीं सह सकता।
इतना सशक्त होकर नारी टूट जाती है, जब उसका साथी (पुरुष) उसे धोखा दे देता है।
एक मजबूत से मजबूत नारी एक पुरुष के धोखे के आगे टूट जाती है और पुरुष साध लेते हैं अपना नया स्वार्थ। नारी कोई खिलौना नहीं जिसके साथ जब जी किया खेल लिया और जब जी भर गया तो दूसरी को खोज लिया।
क्या ये पुरुष समाज राम नहीं बन सकता? स्त्रियों को तो वह राधा, मीरा और सीता ही बनाना चाहता है। अगर हैं फिर भी उनकी कदम _कदम पर परीक्षा ली जाती है।
आखिर कब तक?
कब यह पुरुष समाज समझेगा कि नारी को भी पीड़ा होती है पर वह सह लेती है सब।
बेटे की तकलीफ, पति की तकलीफ, बाप तकलीफ, पर जब एक प्रेमी की बात आती है तो वह टूट जाती है। वह प्रेमी जो एक दिन उसे न जाने कितने सपने दिखाता है और फिर खो जाता है किसी और के ख्वाबों में। दे देता है उसकी जगह एक नई स्त्री को और बना देता है एक नारी को दूसरे नारी की दुश्मन। एक बार फिर पीड़ा नारी को ही सहनी पड़ती है।