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Prayagraj : आईपीसी की धारा 420 को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती

कहा, आईपीसी की धारा 417 समान, केवल सजा के प्रावधान में है अंतर

हाईकोर्ट ने मामले में विचार कर याचियों के खिलाफ उत्पीडऩात्मक कार्रवाई पर लगाई रोक

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 (धोखाधड़ी और बेईमानी से सम्पत्ति देने के लिए प्रेरित करना) को चुनौती दी गई है। याचियों की ओर से कहा गया है कि यह मूल अधिकारों का हनन करती है। यह संविधान की धारा 14 और 21 का उल्लंघन है। कोर्ट ने मामले में याचियों को अंतरिम राहत प्रदान करते हुए उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।

यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति डॉ. आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने नीरज त्यागी व अन्य की याचिका पर विचार करते हुए दिया है। याचियों की ओर से कहा गया कि आईपीसी की धारा 417 के तहत दंडनीय धोखाधड़ी के अपराध और धारा 420 आईपीसी के तहत दंडनीय सम्पत्ति के स्थानांतरण से संबंधित धोखाधड़ी के अपराध के बीच कोई विशेष अंतर नहीं है। धारा 420 में अधिक सज़ा का प्रावधान है। जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ है।

आईपीसी की धारा 417 में प्रावधान है कि जो कोई भी धोखाधड़ी करेगा उसे एक साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकेगा। जबकि, धारा 420 में कहा गया है कि जो कोई भी धोखाधड़ी करता है और बेईमानी से किसी भी सम्पत्ति को देने के लिए किसी व्यक्ति को प्रेरित करता है, जो मूल्यवान संपत्ति में परिवर्तित होने में सक्षम है। उसे किसी भी अवधि के लिए कारावास की सजा दी जाएगी। जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है और साथ ही उसे जुर्माने से भी दंडित किया जा सकता है।

याचियों ने तर्क दिया कि एक ही अपराध को कवर करने वाले दो प्रावधानों में दी गई सजा बिल्कुल अलग नहीं हो सकती है। इस तरह का अंतर बिना किसी स्पष्ट अंतर के है और इस प्रकार उच्च सजा वाले प्रावधान को संविधान की धारा 14 और धारा 21 का उल्लंघन मानते हुए रद्द किया जाना चाहिए।

मामले में याची नंबर दो इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (आईएचएफएल) ने आवास परियोजनाओं के निर्माण और विकास के प्रयोजनों के लिए शिप्रा समूह (उधार लेने वाले) को 2801 करोड़ रुपये की 16 ऋण सुविधाएं मंजूर की। शिप्रा समूह की ओर से विभिन्न कंपनियों के शेयर याची के पक्ष में गिरवी रखे गए।

मेसर्स कदम डेवलपर्स प्राईवेट लिमिटेड को अपनी उप-पट्टे के तहत यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (येडा) द्वारा आवंटित भूमि को आईएचएफएल के साथ गिरवी रखने की अनुमति दी गई थी। ऋण सुरक्षित करने के लिए मेसर्स कदम डेवलपर्स के सौ इक्विटी शेयर (डीमेटेड) गिरवी रखे गए थे। शिप्रा ग्रुप ने लगभग 1763 करोड़ रुपये का डिफाल्ट किया।

शिप्रा ग्रुप की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने की वजह आईएचएफएल ने गिरवी रखे गए इक्विटी शेयरों को एमथ्रीएम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ मेसर्स फाइनलस्टेप डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड को नौ सौ करोड़ रुपये में कन्फर्मिंग पार्टी के रूप में बेच दिया।

एमएस कदम डेवलपर्स ने 45 दिनों के भीतर बिक्री के तथ्य येडा को बता दिए। हालांकि, येडा ने मेसर्स कदम डेवलपर्स के शेयर बेचने के लिए आईएचएफएल और उसके अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई कि उन्हें इससे दौ सौ करोड़ रुपये का घाटा हुआ।

याचियों ने ईसीआईआर के साथ-साथ प्रवर्तन निदेशालय और येडा की ओर से आईएचएफएल और उसके अधिकारियों के खिलाफ ग्रेटर नोएडा बीटा-टू में 15 अप्रैल 2023 को आईपीसी की धारा 420, 467, 468, 471 और 120बी के तहत दर्ज की गई प्राथमिकी को चुनौती दी। याचियों की ओर से तर्क दिया कि विवाद दीवानी प्रकृति का है। आपराधिक कार्यवाही शुरू करना दुर्भावना से प्रेरित है और प्राथमिकी में लगाए गए आरोप कोई संज्ञेय अपराध नहीं हैं।

यह तर्क दिया गया कि येडा को 2021 में बिक्री के तथ्य से अवगत कराया गया था। कोर्ट की ओर से कहा गया कि याचिका में केवल अंतरिम राहत के लिए प्रार्थना की गई है। प्रथम दृष्टया यह विचार आया कि विवाद दीवानी प्रकृति का है और इसे आपराधिक रंग दिया जा रहा है। याचियों के खिलाफ कोई सिविल मामला नहीं है।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड बनाम एनईपीसी (इंडिया) लिमिटेड का हवाला दिया। जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था सिविल मामलों और दावों को निपटाने का कोई भी प्रयास, जिसमें कोई आपराधिक अपराध शामिल नहीं है। आपराधिक मुकदमा चलाने के बावजूद दबाव डालने की निंदा की जानी चाहिए और उसे हतोत्साहित किया जाना चाहिए। कोर्ट ने शीर्ष कोर्ट के आदेश के अवलोकन में याचियों के खिलाफ जारी समन सहित सभी कार्रवाई पर अंतरिम राहत देते हुए मामले की सुनवाई के लिए 28 अगस्त की तिथि तय कर दी।

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