India Ground Report

सरगोशियां : नो ‘आर्टिकल’

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सीन -1
रात के नौ बज रहे थे। वह अब भी नहीं आई थी। घरवाले परेशान हो उठे थे। रोज तो इतना वक्त नहीं लगता था पैखाने से वापस आने में। घरवाले रात भर टॉर्च लेकर खोजते रहे। भोर में वह बाग़ में मिली थी। नंग-धड़ंग। खून से लथपथ समीज-शलवार में लिपटी। उसके आसपास बिखरे थें शराब की बोतलें और चिकेन की चंद हड्डियां। जिस्म के कई हिस्सों से मर्दाने थूक की बदबु आ रही थी। उसके बेपर्दा अंगों से दर्द चीत्कार मार रहा था। माँ ने अपनी साड़ी से उसके नंगे बदन को ढक दिया। गांव वालों की नज़रों से बच-बचाकर उसे घर लाया गया। ना उनसे किसी ने पूछा ना उन्होंने किसी को बताया। कुछ दिन बाद सब सामान्य हो गया था। वह अब अपनी बहन के साथ पैखाने जाती है।

सीन -2
सालों बाद आज जब पछुवा हवाओं से तपता चाँद बादलों की चादर ओढ़ रहा था, उस दम गांव से दूर वीरान से एक खेत में दोबारा नंगा किया जा रहा था उसे और उसकी बहन को। उनके मुंह में कपड़ा ठूंस दिया गया। दोनों के हाथ पांव मजबूती से बाँध दिए गए। और रात भर रौंदा गया उन्हें जब तक वो निढाल हो जमीन पर ना गिर पड़ी । घरवाले एक बार फिर परेशान हो उठे थे। स्मृतियों पर अचानक खौफ़ हावी हो गया। आनन फानन में निकल पड़े बाग़ की ओर। वो दोनों वहां पर भी नहीं थी। माँ पछाड़े मारकर रोने लगी। बाबूजी रह-रहकर बेहोश हो जाते। रात भर खोज जारी रही। सुबह दोनों की लाश मिली, पेड़ पर टंगी।

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