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Niri’s research : गंगा जल में है स्वशुद्धिकरण की अद्वितीय क्षमता

नागपुर : (Nagpur) प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ के दौरान प्रतिदिन करोड़ों लोग पवित्र त्रिवेणी संगम में स्नान कर रहे हैं। इसी बीच सोशल मीडिया पर जल प्रदूषण और जल गुणवत्ता के मुद्दे पर खूब चर्चाए हो रही हैं, लेकिन राष्ट्रीय पर्यावरण प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (National Environmental Technology Research Institute) (निरी) के शोध से गंगा के पानी में स्वयं शुद्ध करने वाला गुण होने प्रमाण मिला है। यही गुण गंगाजल की शुद्धता को बनाए रखता है। ‘निरी’ ने इस संबंध में अपनी एक रिपोर्ट महाकुंभ से पहले ही दिसंबर 2024 में केंद्र सरकार को सौंप दी थी।

दरअसल, ‘निरी’ की एक विशेष टीम पिछले 12 वर्ष से गोमुख और गंगासागर के बीच गंगा जल का अध्ययन कर रही है। इस शोध में पाया गया कि गंगाजल में कुछ विशेष गुणों के कारण स्वयं को शुद्ध रखने की क्षमता है। यदि गंगा जल को निरंतर बहने दिया जाए तो गंगा जल में मौजूद उच्च ऑक्सीजन सामग्री, तटों पर मौजूद वनस्पतियों से प्राप्त जल में घुलनशील टेरपीन, विशेष बैक्टीरियोफेज और गंगा के तल में मौजूद तलछट, इसके प्रवाह को कुछ ही किलोमीटर के भीतर गंगा जल को पुनः शुद्ध कर देते हैं। इस संबंध में निरी ने अपनी एक रिपाेर्ट दिसंबर 2024 में ही केन्द्र सरकार काे साैंप दी थी।

इस बारे में निरी की शोध टीम के प्रमुख डॉ. कृष्णा खैरनार (Dr. Krishna Khairnar) ने बताया कि गंगा का पानी अन्य नदियों की तुलना में स्वच्छ होने के चार मुख्य कारण हैं। पहला कारण यह है कि गंगा के पानी में घुली ऑक्सीजन अन्य नदियों की तुलना में बहुत अधिक है। गंगा नदी हिमालय के अत्यंत ऊंचाई वाले तथा अत्यंत कम तापमान वाले क्षेत्र से होकर बहती है। अत्यंत कम तापमान के कारण गंगा जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है, नतीजतन गंगा का पानी शुद्ध रहता है। उन्हाेंने बताया कि दूसरा कारण यह है कि गंगा के किनारे के प्राकृतिक पौधे और पेड़ बड़ी मात्रा में ‘टरपेन्स’ उत्सर्जित करते हैं और यही टरपेन्स गंगा के पानी को शुद्ध रखते हैं। तीसरा महत्वपूर्ण कारण यह है कि गंगाजल में मौजूद ‘बैक्टीरियोफेज’ बैक्टीरिया का प्राकृतिक दुश्मन है और यह गंगाजल को बैक्टीरिया से मुक्त रखकर उसे शुद्ध करता है। डॉ खैरनार ने बताया कि गंगा जल की शुद्धता का एक और कारण यह है कि गंगा नदी के तल में मौजूद अति सूक्ष्म पत्थर, कंकड़ और कण (तलछट) बहते गंगा जल को शुद्ध करने के लिए छलनी की तरह काम करते हैं। जब गंगा का पानी बहता रहती है तो तलछट उसके पानी के वेग के साथ गतिमान रहती है और गंगा जल को शुद्ध करती है।

उन्हाेंने बताया कि जहां गंगा के प्रवाह की गति कम हो जाती है, वहां तल पर मौजूद पत्थरों, कंकड़ों और तलछटों की गंगा के पानी को शुद्ध करने की क्षमता कम हो जाती है। इन सभी गुणों के कारण यद्यपि गंगा का जल मानवीय उपयोग और विभिन्न मानवी गतिविधियों के कारण प्रदूषित हो जाता है तथापि गंगा जल में थोड़ी दूर तक प्रवाहित होने वाले घुले हुए ऑक्सीजन, टेरपीन, बैक्टीरियोफेज और तलछट के कारण यह कुछ हद तक स्वयं शुद्ध हो जाता है।

डॉ खैरनार ने बताया कि निरी का यह अध्ययन 2510 किलोमीटर लंबी गंगा नदी को तीन भागों में बांटकर किया गया है। पहला भाग गोमुख से हरिद्वार तक, दूसरा हिस्सा हरिद्वार से पटना तक और तीसरा पटना से गंगा सागर तक है। कुल 155 घाटों से हजारों पानी के नमूने लिए गए। विभिन्न आईआईटी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और निरी जैसे अन्य प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों ने भी इस अध्ययन में सहयोग किया है। बतौर डॉ खैरनार निरी की टीम ने गंगा के साथ-साथ यमुना और नर्मदा के जल पर इसी प्रकार का अध्ययन किया है, लेकिन स्व-शुद्धिकरण के जो गुण गंगा में हैं, वह यमुना और नर्मदा में नहीं दिखाई दिए।

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