India Ground Report

New Delhi : दोषियों के प्रति अनुचित नरमी कानूनी व्यवस्था में लोगों के भरोसे पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी: न्यायालय

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों के मामलों में इस आधार पर ‘‘अनुचित उदारता’’ दिखाना कि दोषी सुधार कर सकता है, कानूनी व्यवस्था में लोगों के भरोसे पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी और अदालतों को पीड़ितों के अधिकारों पर भी विचार करना चाहिए।

अदालत ने वर्ष 2005 में बेंगलुरु में 28 वर्षीय बीपीओ कर्मचारी से बलात्कार और हत्या के दोषी कैब चालक शिव कुमार द्वारा दायर अपील पर आदेश पारित किया। आदेश में कहा गया, ‘‘तथ्य ऐसे हैं, जो किसी भी अदालत की अंतरात्मा को झकझोर कर रख देंगे।’’

निचली अदालत ने कुमार को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 366,376 और 302 के तहत अपहरण, बलात्कार और हत्या के अपराध का दोषी करार देते हुए आजीवन सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।

कानून के अनुसार, आजीवन कारावास की सजा काट रहा दोषी समय से पहले रिहाई के लिए योग्य हो जाता है अगर वह वास्तविक सजा के 14 या उससे अधिक वर्ष जेल में रहा हो।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने मंगलवार को कुमार को दी गई उम्रकैद की सजा को संशोधित किया ताकि उसे कोई छूट न मिले और 30 साल सजा पूरी होने के बाद ही रिहा किया जा सके।

पीठ ने कहा, ‘‘अदालतों को दोषियों के सुधार की संभावना पर विचार करते हुए गौर करना चाहिए कि इस तरह के क्रूर मामले में अनुचित उदारता दिखाने से कानूनी व्यवस्था की प्रभावकारिता को लेकर लोगों के भरोसे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अदालत को पीड़ित के अधिकारों पर भी विचार करना चाहिए।’’

पीठ ने कहा, ‘‘इन परिस्थितियों पर विचार करने के बाद हमारी राय है कि यह एक ऐसा मामला है जहां तीस साल के लिए एक निश्चित अवधि की सजा दी जानी चाहिए।’’

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ता को आजीवन कारावास भुगतना होगा। हम यह भी निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ता को वास्तविक सजा के तीस साल पूरे होने के बाद ही रिहा किया जाएगा।’’

Exit mobile version