नई दिल्ली : बीते 5 साल में कर्ज को लेकर दो ट्रेंड सामने आए हैं। परिवारों और सरकार के कर्ज में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन कंपनियों ने कर्ज का बोझ घटाया है। वे नया कर्ज लेने से बच रही हैं। वर्ष 2017 से लेकर जून 2022 के बीच देश में घरेलू यानी पारिवारिक कर्ज करीब एक फीसदी बढ़कर 35.5% हो गया। हालांकि भारतीय ज्यादा कर्ज ले रहे हैं, लेकिन अब भी वे विकसित अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले इस मामले में बेहतर स्थिति में हैं। विकसित देशों में परिवारों का कर्ज जीडीपी का 73.7% तक है, जबकि भारत में अभी ये इसके आधे से भी कम है। यही नहीं, जी-20 देशों और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भी घरेलू कर्ज भारत से ज्यादा है। जी-20 देशों में इसका आंकड़ा जीडीपी के 57.6% तक और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में 45.8% तक है।
पारिवारिक कर्ज
भारतीयों का पारिवारिक कर्ज 5 साल में जीडीपी के 34.5% से 1% बढ़कर 35.5% हो गया। इसमें 18.02 लाख करोड़ की वृद्धि हुई। 2017 में भारतीय परिवारों पर 72.90 लाख करोड़ का कर्ज था। जून 2022 तक ये 90.92 लाख करोड़ हो गया।
सरकार का कर्ज
5 साल में भारत सरकार का कर्ज 69.5% से बढ़कर 82.4% हो गया। 2017 में केंद्र का कर्ज 146.12 लाख करोड़ था। जून 2022 तक ये 211 लाख करोड़ हो गया। अमेरिकी सरकार का कर्ज 1,531 लाख करोड़ से बढ़कर 2,252 लाख करोड़ हो गया।
कॉरपोरेट कर्ज
वर्ष 2017 में भारतीय कंपनियों का कर्ज जीडीपी के 58.3% के बराबर था। जून 2022 तक ये 6% घटकर 52.3% रह गया। ये आंकड़े संकेत देते हैं कि कंपनियां नए कर्ज लेने से बच रही हैं। इसके लिए वे पूंजीगत खर्च में कटौती कर रही हैं।