
मुंबई:(MUMBAI) बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को जानना चाहा कि क्या ऐसा कोई प्रावधान है जो महाराष्ट्र के नासिक जिले के प्रसिद्ध त्र्यंबकेश्वर मंदिर में अति विशिष्ट व्यक्तियों के प्रवेश पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की अनुमति नहीं देता है।न्यायमूर्ति एस वी गंगापुरवाला और न्यायमूर्ति एस जी दिगे की खंडपीठ सामाजिक कार्यकर्ता ललिता शिंदे की ओर से दायर की गयी एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ट्रस्ट द्वारा मंदिर में अति विशिष्ट व्यक्ति (वीआईपी) प्रवेश के लिए 200 रुपये के शुल्क को चुनौती दी गई थी।याचिकाकर्ता के वकील रामेश्वर गीते ने तर्क दिया कि वीआईपी प्रवेश के लिए शुल्क का भुगतान लोगों के बीच अंतर पैदा करता है।
मंदिर में प्रवेश के लिए प्राथमिकता देने की मांग की गई
मंदिर एक संरक्षित स्मारक है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा इसका प्रबंधन किया जाता है, इसलिए मंदिर ट्रस्ट इस तरह के शुल्क नहीं लगा सकता है।हालांकि, उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि मंदिर में प्रवेश के लिए प्राथमिकता देने की मांग की गई है।उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा, यदि कोई व्यक्ति कुछ वरीयता मांगता है, तो अतिरिक्त शुल्क लिया जा सकता है। उन लोगों के लिए व्यवस्था की गई है। आप एक प्रावधान दिखाते हैं जो कहता है कि इसकी अनुमति नहीं है। न्यायालय ने कहा, आप (याचिकाकर्ता) सामाजिक कार्य बेहतर तरीके से कर सकते हैं। हम आपको कुछ समय देंगे। हम आपके तर्कों से आश्वस्त नहीं हैं। उच्च न्यायालय ने इस मामले की अगली सुनवाई 30 नवंबर को तय की है।याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि मंदिर को प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम (एएमपीए) के तहत एक ‘प्राचीन स्मारक’ घोषित किया गया है, जिसका अर्थ है कि यह एक संरक्षित संरचना थी।गौरतलब है कि वर्ष 2011 में उच्चतम न्यायालय ने मंदिर के प्रबंधन के लिए नौ सदस्यीय समिति के गठन का आदेश दिया था।