
MUMBAI : दु्ष्कर्म की शिकार किशोरी को गर्भपात की अनुमति नहीं मिली

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने दुष्कर्म की शिकार 16 वर्षीय किशोरी को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। हालांकि, अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को प्रसव तक किशोरी को मुंबई में एक एनजीओ में दाखिल करने और उसे 50,000 रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का निर्देश दिया है। किशोरी 29 हफ्ते की गर्भवती है।
न्यायमू्र्ति रेवती मोहिते डेरे (Justice Revati Mohite Dere) और न्यायमूर्ति माधव जामदार (Justice Madhav Jamdar) की खंडपीठ ने छह मई को किशोरी द्वारा अपने पिता के माध्यम से दाखिल उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसमें उसने गर्भपात कराने की अनुमति मांगी थी। इस आदेश की एक प्रति मंगलवार को उपलब्ध कराई गई।
अदालत ने किशोरी की जांच करने वाले चिकित्सा दल की उस राय के मद्देनजर गर्भ गिराने की अनुमति देने से इनकार कर दिया कि अगर इस स्तर पर गर्भपात किया जाता है तो प्रिमैच्योर (समय पूर्व) शिशु के जन्म लेने और उसके ताउम्र बीमारियों का सामना करने का जोखिम रहेगा।
उच्च न्यायालय ने कहा कि चूंकि, किशोरी का पिता एक दिहाड़ी मजदूर है और उसकी मां की मौत काफी पहले हो चुकी है, इसलिए इस नाजुक स्थिति में उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है।
खंडपीठ ने कहा, “हम राज्य सरकार को याचिकाकर्ता को प्रसव और उसके बाद की जरूरी अवधि तक कांजुरमार्ग स्थित वात्सल्य ट्रस्ट में दाखिल कराने के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश देते हैं। वात्सल्य ट्रस्ट के अधिकारी याचिकाकर्ता को सभी आवश्यक सुविधाएं प्रदान करेंगे और प्रसव के समय उसे सरकारी/नागरिक अस्पताल में भर्ती कराने के लिए कदम उठाएंगे।”
अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को मनोधैर्य योजना के तहत याचिकाकर्ता को मुआवजे के भुगतान के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के समक्ष सभी जरूरी दस्तावेज पेश करने का भी निर्देश दिया। मनोधैर्य योजना में यौन अपराध की पीड़ितों को मुआवजा देने का प्रावधान है।
आदेश में कहा गया है, “हम राज्य सरकार को आज (छह मई) से दस दिनों के भीतर याचिकाकर्ता के खाते में 50,000 रुपये की राशि जमा कराने का भी निर्देश देते हैं।”
गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम के तहत गर्भावस्था के 20 हफ्तों के बाद उच्च न्यायालय की अनुमति के बगैर गर्भपात नहीं कराया जा सकता।