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Mumbai : बेआवाज सही, आहट तो है

हमारे भीतर कहीं कुछ अपना और खास होता है… हमेशा… औरों से अलग। अपने आप तो वह कम ही निकलता है लेकिन उसकी एक नर्म बे आवाज़ आहट होती है। हमें उसे सुनने की जरूरत होती है। आप जब ‘डैला बैला: बदलेगी कहानी’ फिल्म देखेंगे तो समझ आएगा कि आशिमा वर्धन जैन द्वारा अभिनीत किरदार डैला बैला ही है जिसके अंदर बेआवाज आहट सुनने की सलाहियत है। गलत बताने और जबरन उस पर अपने विचार थोपने से अच्छा है उस संवेदना तक पहुंचने का प्रयास किया जाए, जिसे हम अभी नहीं समझ सकते या जिसे हम अभी नहीं कह सकते या नहीं कहना चाहते। ‘डैला बैला: बदलेगी कहानी’ की कहानी का निचोड़ यही है कि सामाजिक मानदंडों और एक्सपेक्टेशन को ढोने से अच्छा है, आवाज उठाना होता है ताकि इसकी गूंज सब अपने अपने ढंग से सुन लें। डीबीडी के साथ हुए एक खास मुलाकात में आशिमा वर्धन जैन ने इन सभी पहलुओं पर दिल खोलकर बातें की।

Q. ‘डैला बैला: बदलेगी कहानी’ की कहानी क्या है और आपको क्यों लगा कि ये फिल्म मुझे करनी चाहिए ?
मुझे कहानी अच्छी लगी। यह फिल्म आत्म-खोज, पहचान और छोटे शहरों की बड़ी जद्दोजहद की कहानी है। यह सिर्फ एक लड़की की कहानी नहीं है, बल्कि हर उस इंसान की कहानी है जिसने कभी अपनी इच्छाओं को समाज के बनाए सांचों में फिट करने की कोशिश की हो। और इसीलिए फिल्म की कहानी बहुपरती हो जाती और यथार्थ को अधिक संश्लिष्ट ढंग से अभिव्यक्त करती है। फिल्म आपको मोहब्बतगंज के जरिए एक ऐसे भारत से मिलवाती है जो बदलाव के मोड़ पर खड़ा है — जहां एक युवा लड़की डैला बैला अपने आत्मविश्वास के दम पर बदलाव की शुरुआत करती है, बड़ी ही सादगी से हमारे वर्तमान के एक टुकड़े से हमें मिलाती हुई।

Q. फिल्म में ‘सिंपल सिनेमा’ की बात की गई है—इसका मतलब क्या है?
इसका मतलब है वो सिनेमा, जो ज़िंदगी से बात करता है। कहता भी सरलता से है, दिखाता भी सरलता से है। इसमें न कोई बनावटीपन है, न ओवरड्रामा। यह रियल लाइफ की फिल्म है, जहां हर किरदार ऐसा है जैसे वो आपके घर, आपके मोहल्ले का हो। यह जनरेशन गैप, पेरेंट्स की उम्मीदें, और युवा मन की बेचैनी सब कुछ सच्चाई के साथ सामने लाती है। शायद साहित्य की भाषा में में इसे संवादधर्मी कहानी कहते हैं। उसका मतलब है कि संवाद के लिए आमंत्रित करती हुई कहानी कि अपने – अपने अनुभवों से आप इससे अर्थ निकालें। इतना ही नहीं इसमें अर्थ भरें भी। एक दूसरे से कटा अपने-अपने अंदर खुद अपने से भी छिपा जीवन जीने की यह जो ढब है, डैला बैला उसी को बाहर लाती है।

Q. फिल्म में आपका किरदार कैसा है?
मैं डौलू का किरदार निभा रही हूं, जो डॉक्टर बनने की तैयारी कर रही एक कोचिंग स्टूडेंट है। वो फैशन, आउटफिट्स, नेल आर्ट सब एक्सप्लोर करती है, लेकिन दिल से बहुत सच्ची और ज़मीन से जुड़ी लड़की है। उसके दोस्त और टीचर्स उसे प्यार से ‘डैला बैला’ बुलाते हैं। वो नाम ही जैसे उसकी पहचान बन जाता है। फिल्म में मैं शैंकी नाम के एक लड़के की ओर आकृष्ट होती हूँ लेकिन कुछ ऐसा होता है कि वो सपने जैसी दुनिया बिखर जाती है। डैला बैला अपनी महत्वाकांक्षाओं और क्षमताओं को सीमित करने वाली सामाजिक अपेक्षाओं पर सवाल उठाना शुरू कर देती है। ऐसे हाल में सोचिये डैला बैला अपने अंदर कितना दर्द सहती होगी। इसकी फिक्र पिता को बनी रहती है पर उस तक पहुंचने की उनके पास कोई पगडंडी नहीं है। क्योंकि वक्त के साथ बदलाव लाने से ही अगली पीढ़ी के साथ रिलेट किया जा सकता है। वह भी एक सीमा तक। ऐसे में थोपी गए रूढ़ियों पर सवाल उठाना समाज कहां गवारा करता है।

Q. फिल्म डायरेक्टर नीलेश जैन के साथ काम का अनुभव कैसा रहा? उनसे क्या सीखा?
नीलेश सर ने बस एक बात कही थी कि तुम जैसे हो, वैसे ही कैमरे के सामने रहो। यही उनकी खूबसूरती है। उन्होंने मुझे सिखाया कि ज़िंदगी में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, मेहनत बंद नहीं होनी चाहिए। और हर दिन कुछ न कुछ नया सीखना चाहिए।

Q. अनुभव कैसा रहा?
शूटिंग के दौरान मुझे एक परिवार जैसा माहौल मिला। सबने एक-दूसरे को खूब सपोर्ट किया। मुझे अपने सीनियर एक्टर्स से बहुत कुछ सीखने को मिला। हमने फिल्म की शूटिंग बाराबंकी, लखनऊ और मुंबई की असली गलियों और लोकेशंस पर की है। इसके बाद भी सेट पर घर जैसा खाना, वो कभी नहीं भूल सकती।

Q. क्या फिल्म कोई खास मैसेज देती है?
बहुत सारे मैसेज हैं, जो हर दर्शक अपने तरीके से समझेगा। एक बात जो मुझे खास लगी वो ये — “अब लड़कियां ख़ुद के लिए सजती हैं, ख़ुद की पसंद के लिए, ख़ुद की ख़ुशी के लिए, ख़ुद के कॉफिडेस के लिए सजती हैं।। और एक और लाइन जो दिल को छूती है — “हमारे फैसले, हमारे होने चाहिए”

Q. आपने किन-किन सितारों के साथ काम किया है अब तक?
मैंने कई ब्रांड्स के लिए ऐड्स किए हैं और उनमें अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी, मिथुन दा, मोहनलाल, चियान विक्रम, वेंकटेश सर जैसे लीजेंड्स के साथ काम करने का सौभाग्य मिला है। लेकिन ‘डैला बैला: बदलेगी कहानी’ मेरी पहली फीचर फिल्म है और इसमें मैंने अपनी पूरी जान लगा दी है।

Q. आपको किस ज़ोनर की फिल्में देखना पसंद है?
मुझे रोमांटिक कॉमेडी और कॉमेडी फिल्में बहुत पसंद हैं लेकिन जब भी कोई बायोपिक देखती हूं, तो दिल भर आता है। जब किसी की ज़िंदगी की संघर्ष की कहानी पर्दे पर देखती हूं तो आंखें नम हो जाती हैं।

Q. आपकी फेवरेट एक्ट्रेस कौन हैं?
आलिया भट्ट। उनकी फिल्म गंगूबाई ने मुझे अंदर तक हिला दिया था। उनकी परफॉर्मेंस बहुत इंस्पायरिंग था। मैं उनके साथ काम करने का सपना देखती हूं।

Q. एक सक्सेसफुल फिल्म आपके लिए क्या होती है?
मेरे लिए वो फिल्म सफल है जो लोगों को भीतर से छू जाए और उन्हें इंसान के तौर पर थोड़ा बेहतर बना दे। पैसा, शोहरत बाद में आती है, लेकिन अगर फिल्म देखने के बाद किसी की सोच बदले, वही सबसे बड़ी सफलता है।

Q. अगर आपको कभी समाज में बदलाव लाने का मौका मिले, तो आप क्या करना चाहेंगी?
मैं शिक्षा के क्षेत्र में काम करना चाहूंगी। शिक्षा वो ताकत है जो किसी की पूरी जिंदगी बदल सकती है।पढ़ाई सिर्फ किताबें नहीं देती, ये सोच देती है, पहचान देती है, सपने पूरे करने की हिम्मत देती है।

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