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Homesceinceरक्षा विज्ञान और तकनीकी : बंदूक की गोली

रक्षा विज्ञान और तकनीकी : बंदूक की गोली

बंदूक की गोली (Bullet) नुकीली चोंच (Pointed nose) वाली बेलनाकार (Cylindrical) आकार के धात्विक आवरण (Metallic casing) का नाम है, जो किसी भी लघु हथियार (Small arms) या बंदूक (Gun) का बार-बार भरने वाला भाग (Part) या घटक (Component) होता है। एक बंदूक से कितनी गोलियां दागी जा सकती हैं यह उसकी निष्पादन क्षमता (Performance) का हिस्सा होते है। बंदूक की गोली में दो प्रमुख भाग होते है – पहला है प्रक्षेप (Projectile) जो प्रक्षेपित होकर लक्ष्य (Target) तक पहुंचता है और दूसरा कारतूस (Case) जिसमें ईंधन (Fuel) और आघात संवेदनशील (Impact sensitive) रसायन भरे रहते है। दोनों भागों का जोड़ (Joint or rim) भी गोली के लिए एक महत्त्वपूर्ण घटक होता है। वास्तव में लक्ष्य को नुकसान पहुंचाना किसी भी हथियार का मकसद होता है। इसलिए गोली हथियार की प्राथमिक (Primary) आवश्यकता होती है। किसी भी बंदूक के निर्माण से पूर्व उसकी गोली की परिकल्पना पूर्ण होनी चाहिए। इसलिए गोली के आधार पर ही बंदूके बनती है।

गोली की विशिष्टताएं

जब भी गोली का निर्माण करना होता है, तो उससे कुछ अपेक्षाएं की जाती है। अगर नई अभिकल्पना (Design) है, तो अपेक्षाएं भी अलग और चुनौतीपूर्ण होती है। गोलियों के निर्माण के लिए कुछ आकर से संबंधित चर राशियाँ (Variables) होती है, जिनका अनुकूल मान होना बहुत जरूरी है। गोली का व्यास (Diameter), उसका आकार (Size), उसकी लम्बाई (Length), उसमें मौजूद ईंधन की मात्रा (Propellant quantity) आदि का संज्ञान लेना बहुत आवश्यक हो जाता है। दूसरी आवश्यकता के रूप में गोली का वजन न्यूनतम (Minimum weight) होना बहुत जरूरी है, जिससे सैनिक ज्यादा से ज्यादा गोलियां लेकर आसानी से चल सके। तीसरी आवश्यकता के रूप में गोली में लक्ष्य को निष्क्रिय (Neutralize) करने की उच्च क्षमता (High Capacity) होनी चाहिए। ऐसा देखा गया है कि मानव शरीर को ज्यादा नुकसान पहुंचाने के लिए गोली शरीर में धंसी (Embedded in Body) रह जानी चाहिए। अगर यह शरीर को भेद कर बाहर निकल जाती है, तो उतना नुकसान नहीं होता है। अगर गोली हल्की हो या कम व्यास की हो तो इसकी गति ज्यादा होती है और ये शरीर को भेद कर दूसरी ओर से निकल (Pass through) जाती है।

इसलिए सैनिक की गति, क्षमता और मार्ग को अवरूद्ध करना गोली की एक जरूरत होती है। गोली को बंदूक में ही पूरी गति मिल जाती है और बंदूक से निकालने के बाद इसकी गति (Velcoity) लगातार घटती (Reduce) रहती है। इसलिए, सटीक निशाना (Correct aim) के लिए धरती के समानांतर प्रक्षेप पथ (Flat Trajectory) होना भी गोली से की जाने वाली चौथी आवश्यकता है। पांचवी आवश्यकता के रूप में लक्ष्य पर आघात करने का वेग भी लक्ष्य भेदन के लिए पर्याप्त होना चाहिए। कम गति होने पर सिर्फ चोट (Hurt) लगेगी और ज्यादा वेग होने पर गोली दूसरी ओर से बाहर निकल (Pass) जाएगी। छठी आवश्यकता होती है बंदूक पर लगाने वाली प्रतिक्रिया (Reaction), जो न्यूनतम होनी चाहिए। इससे स्थायित्व (Stability), विचलन (Deviation), सटीक निशाना (Correct aim), हाथ पर झटके (shock in hans) का नियंत्रण संभव हो पाता है। सातवी आवश्यकता होती है बंदूक की नली और दूसरे भागों का न्यूनतम अपरदन (Erosion) या घर्षण (Friction) होना, जिससे बंदूक की उपयोग आयु (Use-life) बढ़ जाती है। अगर समतल छिद्र (Smooth bore) वाली नली है तो खोल निकास और प्रक्षेप का घर्षण कम होना चाहिए। गोली को घूर्णन देने के लिए अगर अन्दर चूडीदार (Rifling) संरचना है तो इसमें घुमाव कम होना चाहिए, जिससे नली ज्यादा गोली को दागने में समर्थ हो सके।

प्रक्षेप नियामक

प्रक्षेप का व्यास नली के व्यास से कम होता है, जिससे इसे नली में गमन के दौरान कम घर्षण का सामना करना पड़ता है। गोली को एक निश्चित नली निकास गति या मजल गति (Muzzle velocity) दी जाती है। परन्तु जब प्रक्षेप नली से बाहर निकलता है तो इसका आकार, इसका व्यास, इसकी घूर्णन गति, इसकी लम्बाई, आदि, प्रक्षेप के दौरान इसकी गति में आई कमी को नियंत्रित करते है। बन्दूको का प्रयोग अधिकतम 800 मीटर तक मार करने के लिए होता है और इस दूरी तक इसमे पर्याप्त अवशिष्ट गति (Sufficient residual velocity) होनी चाहिए, जिससे लक्ष्य पर आघात IImpact on target) को प्रभावी किया जा सके। प्रक्षेप को साधारणत: नौकाकार (Boattail) बनाया जाता है, जिससे वायु में गमन के समय इसमें अवरोध (Resistance) कम से कम हो और गति में कमी भी कम आए। प्रक्षेप के लिए प्रक्षेप गुणांक (Trajectory Coefficient) एक चर राशी होती है, जो उसकी भारित शक्ति और मजल गति को निर्धारित करती है।

कारतूस की जरूरतें

कारतूस में ईंधन और आरंभक संघटन भरे जाते है और ये निर्माण में बेलनाकार खोखला आवरण होता है। इसमें पीछे आघात संवेदनशील पदार्थ भरने की जगह होती है, जो घोड़ा (Trigger) दबाने पर नुकीले कील (Striking pin) के आघात से प्रज्वलित (Ignite) हो जाता है। इस प्रज्वलन से ईंधन में आग लग जाती है और पूरा रसायन गैस में बदल जाता है। इसमें गैस का आयतन (Volume) 14000 गुणा बढ़ जाता है। आयतन में आई इस वृद्धि के साथ साथ इस गैस का ताप (Temperature) 3000 डिग्री सेल्सियस होता है। इस दोनों के सम्मिलित प्रभाव से कारतूस के आवरण में सामान्य वातावरण के दाब (Atmospheric pressure) का 3500 गुणा दाब पैदा हो जाता है। इससे प्रक्षेप कारतूस से अलग (Projectile detaches from case) होकर तेजी से आगे बढकर नली से निकल कर लक्ष्य की ओर चला

जाता है। दूसरी ओर कारतूस वाला हिस्सा फैलकर (Case expands) नली को भर देता है, जिससे गैस का रिसाव (Leakage of gas) पीछे नही हो। बाद में प्रक्षेप निकालने के बाद जब दाब कम हो जाता है तो कारतूस का भाग सिकुड़ (Shrinks) जाता है। इससे गोली के खाली कारतूस वाले भाग को आसानी से बंदूक से बाहर निकालकर अगली गोली स्वचालित (Automatic) या कृत्रिम (Manual) ढंग से भरी जा सकती है। ये कारतूस वाला भाग बंदूक की प्रतिक्रिया को भी प्रभावित करता है, जिसका नियंत्रण भी आवश्यक है।

गोली निर्माण की गणना

गोली के लिए उसका (Cross-sectional density) अनुप्रस्थ घनत्व (S) एक आवश्यक राशी है। इसका मान बंदूक के लिए 8.75×10-5 से 21×10-5 किलोग्राम प्रति वर्ग मिलीमीटर होता है। इसे गोली के (Weight) वजन (M) को नली के व्यास (D) के वर्ग से भाग देकर प्राप्त किया जाता है, S=M/D2. अगर नली का व्यास नियत (Constant) किया जाए, तो अनुप्रस्थ घनत्व का मान चुनकर गोली का वजन निकाला जा सकता है। अगर लक्ष्य पर आघात करने के समय आवश्यक ऊर्जा ज्ञात हो, तो उससे आघात वेग (Strike velocity) का आकलन संभव है। अगर ऊर्जा का मान E है, तो E = ½ MV2. इससे आघात वेग का मान निकाला जा सकता है, V = Ö2E/M. आघात वेग से गोली का नली निकास वेग (Muzzle velocity) निकला जा सकता है। इसके लिए वायु में गोली की मंदन दर (Deceleration rate) ज्ञात होनी चाहिए। इसके आकलन से गोली के प्रक्षेप में लगे समय (Time to strike) का हिसाब लगाया जा सकता है। अब प्राक्षेपिकी (Ballistics) के सिद्धांतों की मदद से गोली का प्रक्षेप पथ निकाला जा सकता है। गोली की नली निकास गति ईंधन के ज्वलन (Combustion) से प्राप्त गैस की ऊर्जा (Energy of gas) से निकाली जा सकती है। ईंधन के

कैलोरिमितीय मान (Calorimetric value) से गोली को दी गई ऊर्जा ज्ञात हो जाती है। इसका लगभग 30 प्रतिशत भाग गोली की गतिज ऊर्जा (Kinetic energy) के रूप में प्रकट होती है। साथ ही इसमें प्रतिक्रिया आकलन (Assessment of reaction), गैस दाब, वायु से विचलन, नली के अन्दर का चूडीदार मरोड़, कारतूस का आयतन, आदि का योगदान भी होता है।

उपसंहार

गोली से प्रारम्भ कर ही किसी नए बंदूक का अभिकल्पन संभव हो पाता है। इस आलेख में गोली के दोनों भाग प्रक्षेप और कारतूस के बारे में जानकारी देने की कोशिश की गई है। साथ ही ये भी कोशिश की गई है कि गोली से संबद्ध प्राथमिक गणना की जा सके।

धन्यवाद।

लेखक परिचय

डॉ हिमांशु शेखर एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं, एक अभियंता हैं, प्राक्षेपिकी एवं संरचनात्मक दृढ़ता के विशेषज्ञ हैं, प्रारूपण और संरूपण के अच्छे जानकार हैं, युवा वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित हैं, गणित में गहरी अभिरुचि रखते हैं, ज्ञान वितरण में रूचि रखते हैं, एक प्रख्यात हिंदी प्रेमी हैं, हिंदी में 13 पुस्तकों के लेखक हैं, एक ई – पत्रिका का संपादन भी कर रहे हैं, राजभाषा पुस्तक पुरस्कार से सम्मानित हैं, हिंदी में कवितायेँ और तकनीकी लेखन भी करते हैं, रक्षा अनुसंधान में रूचि रखते हैं, IIT कानपुर और MIT मुजफ्फरपुर के विद्यार्थी रहें हैं, बैडमिन्टन खेलते हैं।

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