India Ground Report

motivational story : नामदेव का प्रेम

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तेरहवीं सदी में महाराष्ट्र के पंढरपुर गांव में जन्मे संत नामदेव जाति, रंग, नस्ल भेद आदि कुप्रथाओं के कट्टर विरोधी थे। वे मानते थे कि सृष्टि के प्रत्येक प्राणी में प्रभु का वास है।

एक दिन उन्होंने अपने लिए रोटी सेंक कर रखी ही थी कि एक कुत्ता उसे मुंह में दबा कर ले भागा। उनके आश्रम में बैठ लोगों ने सोचा कि इतने श्रम से प्राप्त हुआ आहार छिन जाने से संत नामदेव कुपित होंगे और उसे मारने को कहेंगे। लेकिन रोटी ले कर उसे भागते हुए देख कर संत भावविभोर होकर उसे पुकार उठे, ‘रुखड़ी न खाइयो, स्वामी रुखड़ी न खाइयो। हाथ हमारे घिरत कटोरी, अपनी बांट ले जाइयो।’

यह घटना बताती है कि वे किसी सिद्धान्त या नैतिकता के लिए जाति- नस्ल का भेद नहीं करते थे, उनके हृदय में सचमुच सभी प्राणियों के लिए समान प्रेम का भाव था। सच्चे संत दूसरों को उपदेश देने के लिए समता और प्रेम की बातें नहीं कहते, उनका हृदय सचमुच निर्मल और उदार होता है।

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