इंडिया ग्राउंड रिपोर्ट डेस्क
मुरादाबाद: (Moradabad) समाजसेवी सरदार गुरबिंदर सिंह 22 बरसों से नूरहीन लोगों के लिए फरिश्ते की मानिंद हैं। वे जगह-जगह कैंप लगाकर लोगों को नेत्रदान के प्रति जागरूक कर उनसे हाथ जोड़कर नेत्रदान करने का विनम्र अनुरोध करते हैं। गुरबिंदर सिंह अब तक 3,000 से अधिक लोगों से नेत्रदान कराकर हजारों लोगों के जीवन में रोशनी ला चुके हैं। मुरादाबाद के बाशिंदे समाजसेवी का साफ मानना है, नेत्रदान महादान है। जीते-जीते रक्तदान, जाते-जाते नेत्रदान सरीखे स्गोलन को उन्होंने अपने जीवन का मूल मंत्र बना लिया है। कहते हैं, मानव सेवा ही ईश्वर की सेवा है। मान लीजिएगा, सरदार गुरबिंदर सिंह रात-दिन वाहे गुरू की इसी सेवा में जुटे हैं। वह यूपी के संग- संग उत्तराखंड में भी जा-जाकर नेत्रदान की अलख जगाते हैं। शहर-दर-शहर लेक्चर देते हैं। हालांकि किसी अवार्ड की उन्हें दरकार नहीं है, बावजूद इसके सैकड़ों ट्राफी और प्रशस्ति पत्र उनकी झोली में हैं।
सक्षम संस्था की ओर से हाल ही में नेत्रदान और रक्तदान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए उन्हें वरिष्ठ श्रेणी में स्मृति चिन्ह और शाल देकर नोएडा में सम्मानित किया गया है।
वह स्मरण करते हुए बताते हैं, मुरादाबाद नागरिक समाज- मुनास संस्था की ओर से 22 बरस पहले एक नारा दिया था- ‘मुनास ने देखा एक सपना, हर शहर का हो आई बैंक अपना’। इसी स्लोगन को अपना आदर्श मानते हुए वह हर शहर में एक आई बैंक स्थापित करना चाहते हैं, जिससे नेत्रदान के लिए संकल्पित व्यक्ति अपनी चाह को पूरा कर सके। सरदार गुरबिंदर सिंह और उनकी टीम हर स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर ’नेत्र दान करने वाले परिवारों का नागरिक अभिनंदन करवाते हैं और नेत्र गृहीता लोगों को कार्यक्रम में आमंत्रित कर उनके अनुभव समाज के साथ साझा करते हैं । जिससे दीगर लोगों को नेत्रदान के लिए प्रेरित किया जा सके।
इस नेक काज को करने का विचार उन्हें 22 बरस पहले तब आया, जब उनके बड़े भाई की आंखों की रोशनी चली गई। इलाज के बाद रोशनी तो आ गई, लेकिन इस घटना ने इनकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया। उन्होंने उसी दिन फैसला किया कि वे अब लोगों की जिंदगी में उजाला लाने का काम करेंगे ताकि नूरहीन व्यक्ति भी खुशहाल जीवन जी सकें। इसके लिए वह नेत्रदान की मुहिम में जुट गए। उनकी लगन और जुनून को देखते हुए उनके दो सामाजिक मित्रों अजय गुप्ता और राघव गुप्ता ने मुरादाबाद में ही एक वर्ल्ड क्लास आंखों का अस्पताल खोलने का संकल्प लिया, क्योंकि वे अपने पिता जगदीश शरण गुप्ता को नेत्रों के उपचार के लिए बार-बार अलीगढ़ और दिल्ली लेकर जाते थे। अंततः उन्होंने सीएल गुप्ता आई इंस्टिट्यूट की स्थापना की और इस हास्पिटल में संस्थापक सचिव की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी गुरबिंदर सिंह के हाथों में सौंप दी। अब सरदार गुरबिंदर सिंह की पहचान ‘आंखों वाले सरदारजी’ के नाम से है।