India Ground Report

सरगोशियां : लैला की उँगलियाँ

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रात की देवी है – लैला ! लैला का अर्थ है श्यामा। रात अंधेरी होती है इसलिए देवी का नाम लैला पड़ा होगा। जब मनुष्य मर जाता है, तब दूसरी दुनिया में सबसे पहले लैला के पास पहुँचता है। लैला उसका निरीक्षण करती है । वह देखती है कि इसके मन में अगड़म -बगड़म, भला- बुरा , इतना सब कुछ भरा हुआ है। इसका पुनर्जन्म होना है अगर यह इन सारी स्मृतियों को लेकर अगले जन्म में पहुँचेगा, तो इसका जीना मुश्किल हो जाएगा। यह पुराने जन्म की स्मृतियों से ही झूझता रहेगा, तो नयें जन्म को कैसे जिएगा? नया लिखने के लिए स्लेट पोंछनी होती है। लैला यही काम करती है।

अपनी तर्जनी से मनुष्य की आत्मा के ऊपरी होंठ को दबाती है और उसकी स्मृति निकाल लेती है । नाक और होंठ के बीच वह छोटी सी जगह, दबी हुई। छूकर देखो,उस पर तुम्हारी तर्जनी एकदम फिट हो जाएगी। तुम्हारी तर्जनी का माप लैला की तर्जनी जैसा है। नाक और होंठ के बीच की जगह जहाँ मूँछ होती है या नहीं भी होती । लैला ने छूकर दबाया था। इसलिए मनुष्यों का ऊपरी होंठ बीच से दबा होता है।

इस कहानी के हिसाब से, ऐसा मान सकते हो कि, नाक और होंठ के बीच की इस जगह में तुम्हारे पूर्व-जन्मों की स्मृतियाँ रहती थी, तुम्हारे होंठ के ठीक ऊपर, लैला की ऊँगली का निशान है। तुम ताउम्र इस निशान को अपने साथ लेकर चलते हो। लैला विस्मृति की देवी है। तुम विस्मृति का स्पर्श अपने साथ लेकर चलते हो। तुम्हारे ऊपरी होंठ को जब तक लैला अपनी तर्जनी से नहीं छुएगी, तुम्हें न तो अगला जन्म मिलेगा, न ही किसी तरह की कोई प्रसन्नता।

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