
‘मोम की जि़ंदगी घुला करना‘
मैं तो उनके सामने अभी तक बच्ची ही हूं। वे कहती थीं… तुम्हारे भीतर एक सूनापन है मेरे बच्चे… तुम्हारे जैसी लड़कियां भीतर से हमेशा अकेली होती हैं। मैं बच्ची हूं… मम्मा की इस बात का मतलब नहीं समझ पाती, लेकिन मतलब समझे बगैर ही बड़ी हो जाती हूं।
जिस सूखे मुंह से उबासियां लेते हुए जागी हूं, सपने में वहां चिडिय़ों के बच्चों को गाते हुए देखा था — …ट्विज़… ट्विज़… ट्विज़… और गाते,गाते वे दूर उड़ गए थे। सोचती हूं कि कैरोल से बात करूं। उससे कहूं कि वो कितनी खूबसूरत है और मेरा बेटा कितना लकी है कि वो उसकी जि़ंदगी में है। पिछले साढ़े तीन सालों में वो मेरे लिए बेटी जैसी हो गई है। गाल चूमते हुए जब पास आती है तो लगता है, जैसे कोई रहस्य मेरे कानों में घोल रही हो… आखिर वह एक पत्नी है और पत्नियों के पास सैकड़ों रहस्य होते हैं। पत्नी तो मैं भी थी और मेरे पास भी ऐसा बहुत कुछ था, जो मैं किसी से कह देना चाहती थी। कई बार मम्मा से… पर वे तो पहले से ही सब जानती थीं। कॉफी कप को पढ़ते हुए वे जि़ंदगी के तले तक पहुंच गईं और मैं… मैं तो उनके सामने अभी तक बच्ची ही हूं। वे कहती थीं… तुम्हारे भीतर एक सूनापन है मेरे बच्चे… तुम्हारे जैसी लड़कियां भीतर से हमेशा अकेली होती हैं। मैं बच्ची हूं… मम्मा की इस बात का मतलब नहीं समझ पाती, लेकिन मतलब समझे बगैर ही बड़ी हो जाती हूं। सब कुछ बड़ा हो जाता है। देह के उतार,चढ़ाव भी…।
मैं कैरोल को बताना चाहती हंू कि थोड़ा और बड़ी होते ही मैं किसी की पत्नी बनती हूं… मैं खुश होती हूं… अरे, मैं तो ज़रा भी अकेली नहीं, जैसा मम्मा कहती थीं। फिर, जल्द ही ममता के फूल खिलते हैं… मेरा बेटा… और सौभाग्य देखते ही देखते मुरझा जाता है। मेरा हमसफर इस दुनिया को छोड़कर चला जाता है। अंतिम दिनों में मम्मा की आंखें भी साथ छोड़ जाती हैं… शरीर में चीनी ही चीनी भर जाती है…शुगर ही शुगर…।
कभी,कभी मुझे लगता है कि बहुत छोटेपन से ही उन्हें दिखना बंद होने लगा था। शायद इसीलिए वे कॉफी कप को ठीक से नहीं पढ़ पाती थी, लेकिन मैं निरी मूर्ख हूं, जो ऐसा सोच गई। अब कहीं जाकर समझ आया कि उस कप के कारण ही मम्मा की आंखें चली गई थीं। जिसमें वो अपनी बेटी का भविष्य पढ़ती थीं और उसके अलावा कुछ भी और देखना नहीं चाहती थीं।
…और अब मैं इसमें सब कुछ देख सकती हूं… यह खूबी हमारे खून में है। मैं अपने बेटे के लिए जी रही हूं, जो कैरोल के लिए जीता है। हार्टअटैक पड़ा तो बेटा यहां ले आया अपने पास… अपनी कैरोल के पास… और मैं इतना साहस भी नहीं दिखा पाई कि कह दूं… नहीं, मैं ठीक हूं बेटा …इट्स ओके… क्योंकि जानती हूं कि अकेला होने में कुछ भी ओके नहीं होता। मुझसे बोला, केवल अपने साथ रहना दुखी होने के लिए आसान होता है मम्मा, लेकिन लोगों के बीच रहकर दुखी होना कठिन होता है… मेरा छुटकू… सोचता है कि जैसे कितना बड़ा हो गया है… मेरा नन्हा प्रोफेसर यह क्यों नहीं सोचता कि वो सारा दिन अपने काम में व्यस्त होता है और कैरोल भी… फिर क्या फर्क रहा? मैं यहां घुटने पर हाथ टिकाए वैसे ही बैठी हूं, जैसे वहां बैठती थी… लेकिन यह सब कह पाना भी कठिन है।
मैं उसे बताना चाहती हूं, मिसेज़ कैरोल मुझे आपकी गोलियां मिली थीं। मुझे डॉक्टर का नोट भी मिला था और ये शब्द इतना भयानक है कि मैं इसे दोहरा भी नहीं सकती… कॉन च्रा सेप्टिव… ट्वी..ट्वी…ट्वी… कॉन मतलब ‘रुका हुआ’… तुम सोचती हो कि मैं बूढ़ी हूं। कुछ नहीं समझती। मैंने इस शब्द का मतलब अमेरिकन इंग्लिश डिक्शनरी में खोजने की कोशिश की थी, पर वहां यह नहीं मिला। फिर अपने प्यारे प्रोफेसर की डिक्शनरी में देखा और मुझे पता चल गया… मुझे मालूम है कि लोगों के पास हर चीज के लिए शब्द हों, यह बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं… शब्दों का व्यापार भी आवश्यकताओं के साथ चलता है न… एस्किमोज़ के पास बर्फ के लिए जितने शब्द हैं, जरूरी नहीं उतने सबके पास हों और सब उन्हें जानते हों।
लेकिन, तुम वाकई बहुत स्मार्ट हो कैरोल और तुम्हारी पसंद भी उतनी ही शानदार है। यह फूलदान ही ले लो… ये कितना खूबसूरत है, लेकिन मैं इसे छूते हुए भी डरती हूं। नाज़ुक है ना… जहां ऐसी नाज़ुक चीजें हों? वहां कोई बच्चा कैसे खेल सकता है? लेकिन कैरोल जब तुम मेरे जितनी बूढ़ी और अशक्त होगी, उस वक्त ये नाज़ुक फूलदान तुम्हारी परवाह नहीं करेगा… कई बार तो बच्चे भी नहीं करते… लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि वे हों ही नहीं?
तुम बड़े भाग वाली हो कैरोल… एक दिन ज़रूर मैं तुम्हारे बेटे का कॉफी कप पढ़ रही होऊंगी और उससे कह रही होऊंगी… मेरे छुटकू राजा तुम बड़े होकर खूब बड़े और काबिल बनोगे…मैं कहूंगी… तुम कभी अकेले नहीं रहोगे नन्हे सरदार…मैं कहूंगी…तुम्हारी मां मेरी ही तरह जि़ंदगी भर तुम्हारा इंतज़ार करती रही है…।
नायरा कुज़मिच
परिचय : अर्मीनियाई लेखिका। टेम्पज़ में निवास। हेडेंस फेरी रिव्यू की इंटरनेशनल एडिटर। बेस्ट ब्रांच, ब्लैक बर्ड, आर्ट एंड लैटर्स आदि के लिए लेखन।
अनुवाद : उपमा ‘ऋचा‘