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Jaipur : ब्रजभाषा काव्य महागोठ में कवियों ने सावन की बहार को जीवंत किया

जयपुर : राजस्थान ब्रज भाषा अकादमी की ओर से रविवार को ब्रजभाषा काव्य महागोठ का आयोजन किया गया। यह आयोजन झालाना स्थित अकादमी संकुल के ऑडिटोरियम में किया गया। समारोह में जयपुर सहित प्रदेश के विभिन्न शहरों में रहकर ब्रज भाषा में साहित्य साधना में लगे 20 कविगणों ने अपनी एक से बढ़कर एक काव्य रचनाओं के माध्यम से प्रदेश में छाई सावन की बहार और उससे छाई जयपुर शहर में बदहाली के आलम को जीवंत किया।

अकादमी के सचिव गोपाल गुप्ता ने बताया कि इस बार कुंडलिया छंद में ‘सावन आयो’ शब्द समस्या पूर्ति के रूप में दिया गया था सभी कवियों ने इसको आधार बनाकर अपनी मौलिक रचनाएं पेश कीं। इसके अलावा सभी कवियों ने अपनी एक नवीन एवं मौलिक रचना भी प्रस्तुत की। उन्होंने कहा की अकादमी चाहती है योगेश्र्वर श्री कृष्ण की इस भाषा, कला एवं साहित्य के विकास के लिए अभूतपूर्व काम करे, इसके लिए अकादमी ने मुख्यमंत्री महोदय को एक प्रस्ताव भेजा है, अगर इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलती है तो ब्रजभाषा कला, साहित्य के संरक्षण और विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगा। इस अवसर पर चार ब्रजभाषा के साहित्यकारों पूर्व पुलिस आधिकारी वी के गौड़, विठ्ठल पारीक, हरिश्चंद्र हरी एवं गोपीनाथ गोपेश की परिचय पोथियों का राजस्थान लघु उद्योग विकास निगम के अध्यक्ष राजीव अरोड़ा, राजस्थान मेला प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रमेश बोराणा, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष बिनाका जेश मालू और मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकर फारूख आफरीदी ने विमोचन किया।

अध्यक्षीय संबोधन में राजस्थान राज्य मेला प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रमेश बोराणा ने कहा कि आपाधापी के इस युग में मानवता के मूल्यों को बनाये रखने के लिए भाषाओं की सुरक्षा जरूरी है तभी संस्कृति सभ्यता जिंदा रहेगी। भाषा में लोकतत्व का अपना महत्व है और उनका संरक्षण जरूरी है।

मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी फारुख आफरीदी ने कहा कि कला, भाषा, संस्कृति, पुरातत्व इत्यादि धरोहर के संरक्षण संवर्धन की आवश्यकता है और राज्य सरकार इस दिशा में प्रभावी कदम उठा रही है। उन्होंने कहा कि बृजभाषा की रचनाओं में सामाजिक विद्रूपताओं का समावेश सराहनीय है, इसलिए बृज भाषा एवं बृज संस्कृति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

इस अवसर पर राजीव अरोड़ा ने अपने उद्बोधन में कहा कि ब्रजभाषा 7 सात शताब्दियों तक काव्य की भाषा रही है। हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने में ब्रजभाषा की ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ब्रजभाषा ऐसी भाषा है जिसमें रसखान, रहीम दास, कबीर दास, मलिक मोहम्मद जायसी, गुरु गोविंद सिंह जैसे महान संत और कवियों ने अपनी रचनाएं लिखी हैं। देश की पहली एकमात्र अकादमी है जिसकी स्थापना तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर द्वारा वर्ष 1985 में की गई थी, इसके प्रथम संस्थापक अध्यक्ष विष्णु चंद्र पाठक थे। राजस्थान में ब्रजभाषा भाषी लोग राज्य के 103 विधानसभा क्षेत्रों में भारत के संपूर्ण क्षेत्रफल का 35 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश में 52 प्रतिशत बाकी 13 प्रतिशत दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश और गुजरात में है। राजस्थान के 5 संभागों के 18 जिलों में ब्रजवासी लोग बड़ी संख्या में निवास करते हैं। अकादमी का मुख्य काम ब्रजभाषा गद्य और पद्य का प्रचार- प्रसार, कला साहित्य एवं संस्कृति का संरक्षण एवं नवाचार करना है। इसके अलावा स्थानीय कला एवं विधाओं का संरक्षण करना भी ब्रजभाषा अकादमी का मुख्य कार्य है।

ये रचनाएं रहीं खास

सावन आयौ री सखी,बरस रह्यौ हिय खोल, एक दिना में खुल गई, नगर निगम की पोल, नगर निगम की पोल,सपूरी सड़क धँसि रहीं, पसरीं गढ्ढन माहिं,निगम पै खूब हँसि रहीं कहें वरुण कविराय,सबन नें इतनौ खायौ, फटुआ बने कुबेर,अनूठौ सावन आयौ- वरूण चतुर्वेदी

सावन आयौ मास दो,बरसे प्रेम फुहार। उमर घुमर बदरा करै,मन में हर्ष अपार।। मन मे हर्ष अपार, रचावै रास बिहारी। गोपिन हिये श्याम, मोहिनी मूरत प्यारी।। कहत सावि कविराय, पुलक जावै हैं तन मन। लरज गरज घनघोर, बरसतौ आवै सावन।-डॉ.सावित्री रायजादा

सावन आयौ झूम कें, बूढे गये रिसाय। देख आपनी उमर कूँ, मन में रहे घुटाय।

मन में रहे घुटाय,जवानी घरी है गई। परी बखत की मार, खाट पै धरी रह गई। मन में एकहि सोच,कहाँ वे दिन मन भावन। परै भाड़ में जाय,जि कैसौ आयौ सावन- अशोक उपाध्याय

सावन आयौ झूमिकैं कूंकन लगे मयूर। पीहू कर कोकिल कहै बदरा कितनी दूर।। बदरा कितनी दूर बहत है पवन पछैंया। लगे नाचवे तोता तीतर ता ता थैंया। कह हरीश कविराय कड़कती बिजुरी पावन। रिमझिम रिमझिम यहां बरसतौ आयौ सावन।।-हरीश चंद्र हरि नगर

सावन आयौ झूम कें, हुऔ खुसाल किसान। लग्यौ रोपबे ’खेत’ में, सुपने कौ धन धान। सुपने कौ धन धान,’सुरीले मोरा कूकें’, दियौ हरित संदेस, प्रान वृक्षन में ’फूँकें’। कहत ’कवी’ गोपाल, हियौ सबकौ हरर्षायौ। पानी करत धामाल, जि कैसौ आयौ सावन। -गोपाल गुप्ता

सावन आयौ झूम कें , संग लायौ भूकम्प। सुनकें घबराए घने , दई पलंग ते जम्प। दई पलंग ते जम्प दौर घर बाहर आये। अफरा तफरी बीच छोड़ घरवारी धाये। राधे करी सहाय, आज गोविंद बचायौ। बनी जान पै खूब यार का सावन आयौ। -भूपेन्द्र भरतपुरी

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