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Jagdalpur : बस्तर में रबर खेती की अपार संभावनाएं – एम. वसन्तागेशन

जगदलपुर : रबर अनुसंधान संस्थान कोट्टायाम ने बस्तर क्षेत्र में रबर की खेती की संभावनाएं तलाशने के लिए कृषि अनुसंधान केंद्र बस्तर में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रबर की प्रायोगिक खेती करने जा रहा है। भारतीय रबर अनुसंधान संस्थान कोट्टायम केरल एवं इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के संयुक्त तत्वाधान में रबर अनुसंधान एवं प्रदर्शन का शुभारंभ गुंडाधुर कृषि महाविद्यालय जगदलपुर में किया गया।

कोट्टायम रबर बोर्ड के कार्यकारी निदेशक एम. वसन्तागेशन ने बताया कि रबर अनुसंधान संस्थान कोट्टायाम के वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र की मिट्टी, आबोहवा, भू-पारिस्थितिकी आदि को रबर की खेती के लिए उपयुक्त पाया है, और प्रायोगिक तौर पर एक हेक्टेयर क्षेत्र में रबर के पौधों का रोपण किया जा रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यहां रबर की खेती को निश्चित रूप से सफलता मिलेगी तथा किसानों को अधिक आमदनी प्राप्त होगी। उन्होंने बताया कि पूरे देश मे रबर की खेती को बढ़ावा देने के लिए रबर बोर्ड किस प्रकार कार्य कर रही है। छत्तीसगढ़ प्रदेश में रबर खेती की बढ़ती संभावनाओं और उपजाऊ जमीन की गुणवत्ता को देखते हुए रबर की खेती के लिए अधिक से अधिक किसानों को जोड़ने का प्रयास की आवश्यकता बताई।

कलेक्टर विजय दयाराम ने कहा कि कुछ सालों से उद्यानिकी फसलों के प्रति किसान का झुकाव बढ़ा है। साथ ही कॉमर्शियल क्रॉप में काजु, कॉफी का उत्पादन में भी बस्तर का नाम हुआ है। जिले में रबर प्लांटेशन के लक्ष्य के आधार पर किसानों को प्रोत्साहित कर बहुसंख्यक में प्लांटेशन के प्रयास किया जाएगा।

आरआरआईआई के अनुसंधान संचालक डॉ. एमडी जेसी ने कहा कि रबर एक अधिक लाभ देने वाली फसल है। भारत में केरल, तमिलनाडु आदि दक्षिणी राज्यों में रबर की खेती ने किसानों को संपन्न बनाने में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने ने बताया कि रबर की पौधों को रबर के उत्पादन के लिए तैयार होने में लगभग सात साल लगता है। इस अवसर पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के रिसर्च संचालक डॉ. विवेक त्रिपाठी, गुंडाधुर कृषि महाविद्यालय के डीन डॉ. आरएस नेताम, चीफ साइंटिस्ट डॉ. एके ठाकुर, डॉ. एमजे रेजु सहित कृषि कॉलेज के अन्य अधिकारी और छात्र-छात्राएं उपस्थित थे। कार्यक्रम के उपरांत अतिथियों ने कृषि कॉलेज की जमीन पर रबर के पौधे का रोपण भी किए।

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