
हुई थी मदिरा मुझको प्राप्त
नहीं, पर, थी वह भेंट, न दान,
अमृत भी मुझको अस्वीकार
अगर कुंठित हो मेरा मान;
दृगों में मोती की निधि खोल
चुकाया था मधुकण का मोल,
हलाहल यदि आया है यदि पास
हृदय का लोहू दूँगा तोल!
हरिवंशराय बच्चन
हुई थी मदिरा मुझको प्राप्त
नहीं, पर, थी वह भेंट, न दान,
अमृत भी मुझको अस्वीकार
अगर कुंठित हो मेरा मान;
दृगों में मोती की निधि खोल
चुकाया था मधुकण का मोल,
हलाहल यदि आया है यदि पास
हृदय का लोहू दूँगा तोल!
हरिवंशराय बच्चन