India Ground Report

मुझे कदम-कदम पर

https://www.indiagroundreport.com/wp-content/uploads/2021/08/mujhe-edited-converted.mp3
https://www.indiagroundreport.com/wp-content/uploads/2021/08/1629561573988.mp4

मुक्तिबोध

मुझे कदम-कदम पर
चौराहे मिलते हैं
बांहें फैलाए!
एक पैर रखता हूं
कि सौ राहें फूटतीं,
मैं उन सब पर से गुजरना चाहता हूं,
बहुत अच्छे लगते हैं
उनके तजुर्बे और अपने सपने….
सब सच्चे लगते हैं,
अजीब-सी अकुलाहट दिल में उभरती है,
मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूं,
जाने क्या मिल जाए!

मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में
चमकता हीरा है,
हर एक छाती में आत्मा अधीरा है
प्रत्येक सस्मित में विमल सदानीरा है,
मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में
महाकाव्य पीडा है,
पलभर में मैं सबमें से गुजरना चाहता हूं,
इस तरह खुद को ही दिए-दिए फिरता हूं,
अजीब है जिंदगी!
बेवकूफ बनने की खातिर ही
सब तरफ अपने को लिए-लिए फिरता हूं,
और यह देख-देख बडा मजा आता है
कि मैं ठगा जाता हूं…
हृदय में मेरे ही,
प्रसन्नचित्त एक मूर्ख बैठा है
हंस-हंसकर अश्रुपूर्ण, मत्त हुआ जाता है,
कि जगत…. स्वायत्त हुआ जाता है।
कहानियां लेकर और
मुझको कुछ देकर ये चौराहे फैलते
जहां जरा खड़े होकर
बातें कुछ करता हूं
…. उपन्यास मिल जाते।

कवि परिचय :

गजानन माधव मुक्तिबोध हिन्दी साहित्य की अ​ग्रिम पंक्ति में शामिल कवियों में से एक रहे हैं। उनकी कविताएं जटिल मानव मन के उथलपुथल को व्यक्त करती हैं। वे 11 सितम्बर 1964 को हमसे हमेशा के लिए बिछड़ गए। उनकी प्रमुख कृतियां हैं- चांद का मुंह टेढ़ा है, भूरी भूरी खाक धूल (कविता संग्रह), काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी (कहानी संग्रह)।

Exit mobile version