India Ground Report

हे भीम-तू चिरंजीवी है

हे भीम
तुझे याद करते हुए
रौंगटे खडे होते हैं आज भी
तेरे जीवन के पन्ने पढ़ते हुए
आज भी शर्मसार होता है देश
कि तुझे स्कूल की कक्षा में
चपरासी से अध्यापक तक
सहचर भी…करते थे घृणा
कि पानी का भी था एक अलग घडा
तेरे लिये
जिससे बुझाते थे तुम अपनी प्यास
दबे पांव ही जाना होता था
इस अहसास के साथ
कि कहीं साया भी साथ न हो
आखिरकार
तुम्हारे साये मात्र से हो जाती थी
उच्चवर्णीय लोगों की दीवारें गंदी
जिसके नीचे खडे होकर
तुम, बस बरसात से बचना चाहते थे
और..धकिया दिये गये थे कीचड में
कि तुम्हारा साया भी तो तज्य था.
सफ़र करना होता था मीलों पैदल
कि, बैल गाडी भी खराब हो जाती थी
तुम्हारे स्पर्श-मात्र से
तुम संस्कृत पढ़ना चाहते थे
लेकिन कोई पढ़ाने वाला ही न था
नौकरी करते वक्त
चपरासी भी फ़ेंक कर देता था
तुम्हें फ़ाईलें
वह भी अभिशिप्त था अपनी उच्च वर्णीय खाल से
एक के बाद एक कीलें मिली तुम्हें भीम
उस अथाह दर्द ने- तुम्हें इंसान बनने
और इंसान मनवाने के लिये
महान खुद्दार बनाया
…..और सदियों से
जिस महाड़ के चावदार तालाब में
जहां ढोर ढ़गंर भी पी सकते थे पानी
लेकिन तुम और तुम्हारे सजातिए
वर्जित थे…छूने मात्र से हो जाता था पानी अपवित्र
सन १९२७ के मार्च के बीसवें दिन
अपने हजारों साथियों के साथ
जब तुमने पानी पीने की ठानी थी
तब महाड का तलाब ही न हिला था
हिल गयी थी बुनियाद
मनुवाद के उस मनुष्य विरोधी विचार की
जिसमें इंसान को
पशुओं से भी बदतर
दिया गया था दर्जा.
तुम आग उगलते रहे
कभी बनकर,”मूक नायक”
तो कभी स्वर दिया बज़रिये- “बहिष्कृत भारत”
और उद्वेलित होकर
फ़ूंकी कभी मनु स्मृति
तो कभी सत्याग्रह किया “कालाराम मंदिर” प्रवेश के लिये
तुमने ठीक ही किया था वार
गांधी की कांग्रेस पर
जब २४ लाख खर्च करने का उल्हाना दिया था दलितों पर
तुमने ठीक ही कहा था
कि काश बांट दिये होते ये पैसे
दलित समाज में
क्योंकि भूख बडा सवाल था
पूजा-भावना गौंण प्रश्न थे और हैं भी अभी
….हे बाबा साहेब
तेरे संघर्ष ने हमें दिये हैं मोती
कुछ हार, कुछ गहने
हम उनकी हिफ़ाज़त कैसे करें?
क्योंकि वही ताकतें
बदल-बदल कर आती हैं अपने चोले
भीतर वही बैठा है घातक मनुवादी सर्प
आज भी ढसता है
खेत, जंगलों, खलिहालों, दुकानों, बाज़ारों और गांवों में
आज भी हमारे बच्चे वंचित हैं
समान शिक्षा के लिये
अवसर के लिये
नौकरी के लिये
नेतृत्व के लिये.
तेरा संघर्ष अभी बाकी है भीम
भगत सिंह को भी मलाल है
फ़ूले भी रोते हैं खून के आँसू
पेरियार भी भटकते हैं अभी
तमाम वंचितों में-आदिवासियों में
अभाव में
मैला ढोते जानवर बना दिये गये इंसानों में
…हे भीम
तूने जो दिया
वह कम निकला
हमारी भूख बड़ी है
तेरा भोजन कम पड़ गया.
….हमें तेरे ख्वाबों का
तेरे विचारों का
तेरे कामों का
परिमार्जन करना है
उपार्जन करना है
कि सतत संघर्ष के बिना
सदियों से जी रही लाशों में
विचार और सम्मान की रीढ़
यूँ ही नहीं पड़ जाती.
कि तेरे जैसे हम भी चलें एक दिन
तान कर सीना अपना.
..हे भीम
तू चिरंजीवी है
आग देता रहेगा हमें- हमेशा
जब तक आखिरी वंचित
न चल सके तेरे जैसा
इस पृथ्वी पर.

शमशाद इलाही शम्स

अन्याय और दमन के खिलाफ खुलकर आवाज उठाने वाले कवि हैं। बाबासाहेब पर लिखी इनकी कविता काफी चर्चित रही है।

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