India Ground Report

Editorial on Vinod Duaa: एक पत्रकार ऐसा भी था

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अमित बृज

विनोद दुआ… साथी, तुम्हारा जाना पत्रकारिता के एक युग का अंत है… तुम्हारे अनोखे अंदाज की वजह से टीवी पर हिंदी पत्रकारिता पहली बार किसी धूमकेतु की तरह जगमगाई… और फिर तुम लाइट टॉवर की तरह सालों तक जगमगाते रहे।

तुम्हारा बेलागपन और दुस्साहस मुझ जैसे पत्रकारों को हमेशा चौंकाता रहा है, विस्मित करता रहा है… साथी कैसे तुम इतनी बेबाकी से पूछ लेते रहे सवाल, वह भी उन सत्ताधीशों से, जो पवार के नशे में चूर हैं। जिनके पास असीम ताकत है, तुम्हें नेस्ताबूत करने की।

आज के दौर में जब पत्रकारों का एक बड़ा तबका सत्ता का गुणगान गाता रहता है, तुम्हारा प्रधानसेवक से हर रोज सीधा सवाल करना हमें विस्मित करता रहा हमेशा।

कितनी आसानी से तुम सत्ताधीशों के झूठ, अहंकार और नफ़रत को बेनकाब कर देते रहे। तुम महज एक पत्रकार नहीं थे, एक योद्धा पत्रकार थे। सच्चे अर्थों में शुद्ध पत्रकार।

साथी जीवन के आखिरी दौर में हमने तथाकथित राष्ट्रभक्तों द्वारा तुम्हें ट्रोल होते हुए पाया…! और हमने तुम्हें राष्ट्रद्रोह वाली याचिकाओं के बाद अग्रिम जमानत के लिए अदालतों के चक्कर काटते भी देखा। हमें फक्र है कि इतनी यतनाओं के बाद भी तुमने सरकार और सिस्टम से सवाल पूछना बंद नहीं किया।

पिछले एक दशक में इस देश में बहुत कुछ बदला। इस बदलाव में तुम्हें कुछ कट्टरपंथी समूहों ने विलेन बनाने का हर संभव प्रयास किया… तुम्हारा जाना शायद उनके लिए कोई मायने न रखता हो, लेकिन यकीन मानो मेरे साथी, तुम आदर्श हो, लाखों -करोड़ों दिलों पर राज है तुम्हारा… आने वाली नस्लें याद रखेंगी कि तुम्हारे जाने का मतलब क्या है।

अलविदा नहीं, सलाम मेरे हीरो

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