
Applied Spirituality for Pentium generation : प्रार्थना : ईश्वर को एक ‘मिस्ड कॉल’! भाग – 63

जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है मनुष्य का आध्यात्मिक व्यवहार। आप अपने जीवन को किस तरह संचालित करते हैं और आपका व्यवहार कैसा है। इसे किस तरह वर्तमान जीवन में अपनाया जाए, यह बताने की कोशिश कर रहे हैं शरणागत अजीत
प्रश्न : पिछली बार ‘क्लच पॉइंट’, और इस बार ‘न्यूट्रल’ में रखने की स्ट्रेटेजी काफी दिलचस्प और यूजर फ्रेंडली है। थोड़ा और प्रकाश डालें।
शरणागत अजीत: हां, आसानी से समझ सकते हैं कि गाड़ी को न्यूट्रल में रखने से न तो फालतू का वियर एंड टेअर (Wear and Tear) होगा, और न ही पहियों (Wheels) को,स्टीयरिंग व्हील के माध्यम से कन्ट्रोल करने का झंझट। बल्कि हमारा लक्ष्य तो इससे भी आगे की स्टेज (Stage) होनी चाहिए। लक्ष्य यह होना चाहिए, कि साधना और अभ्यास के द्वारा उस अवस्था को प्राप्त हों जिसमें आप जब चाहें -अपनी इच्छा और ज़रुरत के अनुसार, अपनी गाड़ी के इंजन (Ignition ) को ही ऑफ (Off) कर सकें।
जैसे लाल बत्ती पर इग्निशन को ही ऑफ कर देते हैं, यानि गाड़ी का इंजन बंद कर देते हैं। सोचिये उससे क्या फायदा होता है ? न फालतू का वियर एंड टेअर, न धुंआ, न शोर और न ही फालतू पेट्रोल की बर्बादी। ज़ाहिर तौर पर गाड़ी का माइलेज (Fuel Consumption) भी अच्छा हो जायेगा और कम ईंधन में ज़्यादा दूरी तय कर सकेंगे, ज़्यादा काम कर सकेंगे। लेकिन यह ध्यान रहे, की गाड़ी को मनमर्ज़ी से ‘आन – ऑफ’ (On-Off) करना भली भांति आना चाहिए। यह न हो जाये की स्विच ऑफ तो कर दिया, लेकिन वापस चालू नहीं कर पाएं।
योगी लोग यही करते हैं कि जब चाहा शरीर के बाहर चले गए इंजन को ऑफ करके और जब चाहा, इग्निशन इन करके, शरीर में वापस लैंड (Land) कर गए । “असलियत में शरीर को गाड़ी की तरह ही न्यूट्रल (Neutral) में ऑपरेट करते हुए जीना ही ‘साक्षी भाव’ में जीना है, यह वह अवस्था और भाव है, जहां आप इस Mode में जीते हैं कि ‘तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा…।
अपना कोई ‘कर्ता भाव’ नहीं है, No sense of doership… इस चेतना और संज्ञान के साथ जीवन जीना की हम निमित्त मात्र हैं। उस भाव में और उस संकल्प के साथ जीना की.. ‘Let Thy Will be my ambition ‘, उस समर्पण के साथ, निमित्त बन के, In ‘Impersonal, Alert, Attentive, Awareness’ में, स्वयं को उस प्रोटोकॉल (Protocol) को अर्पण कर देना की ‘Let Spirit lead the Matter’.” अब जब हम माइलेज और fuel efficiency की बात करते हैं तो आपकी गाड़ी की परफॉमेन्स तीन चीज़ों पर निर्भर करती है – एक तो, आपकी मशीन, उसके इंजन का डिज़ाइन, दूसरा आपके ईंधन की गुणवत्ता और तीसरा की आप उस मशीन, या कार को इस्तेमाल कैसे करते हैं ?
न्यूट्रल में रखने का मतलब यह की मन के disengage रहने के कारण, आपका मन एक तरह के Suspended Animation की अवस्था में रहता है। ध्यान रहे कि मन का ‘वध’ नहीं करना है, मन एक बड़े काम का बड़ा useful टूल है और इसे इस्तेमाल करके ही जीवन यात्रा पर आगे बड़ा जा सकता है। यही वो जरिया है, यही वो रेशम की डोर है, जिसके सहारे, जिसे पकड़कर ही, लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। तो यह गलत फहमी न हो की मन को ख़त्म कर देना है, नहीं, मन को अपाहिज या बेसुध नहीं करना है।
यदि ऐसा होता, तो संपूर्ण योग विद्याओं और अध्यात्म का सिर्फ एक ही प्रयास और लक्ष्य होता कि किसी भी तरह आदमी को, उसके मन को कोमा (Coma) की अवस्था में पहुंचा देना। मन को निर्मल और शांत बना कर, चेतन और जागृत अवस्था में, Alert and Awake रखना है, बस करना यह है कि इसे हमेशा एकदम निर्मल और शांत, बिलकुल एक पालतू ( Clean, Vaccinated and Sterlised pet dog) कुत्ते की तरह गले में पट्टा (Collar) डालकर, एक जंजीर में बांधकर (On the leash) , अपने कदमों में रखना है। इसे अपना दास – (Most obedient servant), बनाकर रखना है।
स्वयं इसका दास नहीं बन जाना है, इसे आपकी अपनी कमज़ोरियों से नहीं खेलने देना है। यदि मन को अपाहिज करना ही अध्यात्म का लक्ष्य होता, तो बजाये साधना और अभ्यास के नए-नए और मुश्किल तरीकों को ढूंढने के, ‘Head Injury’ के नए-नए तरीके ईजाद करना ज़्यादा कारगर और ‘Commercially viable’ होता और फार्मास्यूटिकल कंपनियां इसका इंजेक्शन बना चुकी होती। एक इंजेक्शन लगवाओ और सीधा मोक्ष को प्राप्त हो जाओ।
यहां उन दो प्रश्नों का जवाब खुद बखुद समझ आ जाता हैं, जो आध्यात्मिक यात्रा शुरू करने के समय ज़्यादातर युवाओं के दिमाग में उठते हैं और उन्हें परेशान करते हैं। यह दो प्रश्न होते हैं खान- पान के बारे में। हर युवा यह जानना चाहता हैं कि क्या मांसाहार (Non Veg खाना) गलत हैं और अध्यात्म के मार्ग पर चलने के लिए क्या दारू छोड़ना एक बेसिक शर्त हैं, एक Pre Condition हैं ? आध्यात्मिक मार्ग पर, शुरू में कुछ शर्ते, कुछ नियम और आचरण की शर्ते, ज़रूरी होती हैं, एक बार रास्ता पकड़ लिया तो प्रकृति और सृष्टि को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता हैं की शरीर के अंदर क्या डालते हो और शरीर से क्या-क्या करते हो ।पूरा प्रोसेस डायनामिक (Dynamic Process) हैं।
जैसा-जैसा करते जाओगे वैसा- वैसा सामने आता जायेगा। जैसे Steering Wheel को घुमाओगे, नतीजा भी वैसा ही सामने आता जायेगा। बस इस जाग्रति के साथ यात्रा करो की तुम्हारा स्टीयरिंग व्हील गाड़ी के पहियों को कण्ट्रोल करा रहा हैं या तुम्हारे पहिये तुम्हारे स्टीयरिंग पर हावी हैं और उसे कण्ट्रोल कर रहे हैं। जैसा दवाई के साथ-साथ डॉक्टर कठोर परहेज़ बताता हैं, ठीक वही सिद्धांत आध्यात्मिक मार्ग की यात्रा पर भी लागू होता हैं। जैसे होम्योपैथिक डॉक्टर यह बताते हैं की उनकी दवाई के साथ-साथ, कच्चा प्याज और कॉफ़ी का सेवन न करें। इसका मतलब यह नहीं हैं कि होम्योपैथिक डॉक्टर या होमियोपैथी ईजाद करने वालों की प्याज़ या कॉफ़ी से कोई खानदानी दुश्मनी हैं या थी।
बस इतना हैं कि अगर दवा का पूरा फायदा चाहते हो तो इन दोनों चीज़ों को उस समय के लिए दूर रखो। Avoid करो, वर्ना दवा का पूरा असर नहीं होगा, दवा उतना फायदा नहीं करेगी – नतीजे उतने ही कम हो जायेंगे। इसी तरह का परहेज़ साधना और अध्यात्म के मार्ग में शुरू में करना होता हैं। एक बार Threshold के उस पार, दूसरी तरफ चले गए, तो न दारू से फर्क पड़ेगा न ही मांसाहार से और न ही कामिनी या सेक्स से।
हां, कॉमन सेंस कहता हैं कि यदि आपकी गाड़ी का इंजन पेट्रोल का हैं, तो उसमें डीजल न भरवाएं और आज की मेडिकल साइंस भी यह बताती हैं कि मानव शरीर की संरचना शाकाहार के लिए ही की गयी हैं और जैसे अपनी गाड़ी में स्पीड पेट्रोल भरवाते हैं और भी बेहतर परफॉरमेंस के लिए उसी तरह शाकाहार में भी ‘स्पीड पेट्रोल’ (Unleaded Petrol ) जैसा हल्का और Pure ऑप्शन चुने, जैसे कंदमूल या बिना मिर्च मसाले और बिना तला भुना खाना पीना। आध्यत्मिक जीवन में आहार, दारू, मांसाहार (Non Veg), और सेक्स के प्रभाव पर बार में वृस्तृत चर्चा करेंगे।
To be continued…..
प्रश्न: आज का सूत्र क्या होगा?
शरणागत अजीत: आज का सूत्र भक्ति में ईश्वर के प्रति ‘अनन्य भाव’ रखने से सम्बंधित हैं। यदि आपकी निष्ठां, आपकी चेतना इधर उधर भटकती रहेगी, एक बिंदु पर एकत्रित न होकर विसरित , भ्रमित और बिखरी हुयी ( Fragmented and Scattered) अवस्था में रहेगी,आप कुछ भी इंटेंसिटी ( Intensity) के साथ नहीं कर पाएंगे। और बिना इंटेंसिटी के कुछ भी हासिल नहीं होगा।अध्यात्म में दो चीज़ों का बहुत महत्त्व हैं एक हैं, पहली आपके संकल्प की तीव्रता, और दूसरी हैं और आपकी सत्यता और सत्यनिष्ठा यानि ऑथेंटिसिटी ( Intensity and Authenticity)। याद है, बचपन में जब लेंस ( Convex Lens) के द्वारा, सूर्य की किरणे इकठ्ठी करके कागज़ को जलाने का प्रयास करते थे, तो कागज़ को जला पाना तब ही मुमकिन होता था।
जब आप सूरज की सभी किरणों को कन्वेंस लेंस के माध्यम से एक बिंदु पर एकत्रित कर लें। समेट लें और फिर उस प्रकाश और ऊष्मा के बिंदु रुपी पुंज को, उस एक पॉइंट पर साधे रखें। जैसे ही किरणों को एक बिंदु पर एकत्रित करके, थोड़ी देर कागज़ पर फोकस करते थे। कागज़ आग पकड़ लेता था। कागज़ में से लपटें निकलने लगती थीं। मन की रहस्मय शक्तियां इसी सिद्धांत पर आधारित हैं। इसी को कहते हैं एकाग्रता और फोकस, तो आध्यात्मिक यात्रा में भी यही सिद्धांत लागू होता हैं। आपको अपने मन के बिखरे हुए अस्तित्व को इकठ्ठा करके, एक बिंदु पर केंद्रित करना हैं और जिस जिस लक्ष्य पर आप इस एकत्रित एवं केंद्रित चेतना को Apply करेंगे, वो सब संकल्प साकार होने लगेंगे। इसलिए पानी की खोज के लिए दस स्थानों पर दो-दो मीटर के कुएं खोदने की जगह, एक स्थान पर ही बीस मीटर तक खोदते जाइये।
पानी ज़रूर निकलेगा।बस खोदना शुरू करने से पहले भूवैज्ञानिकों से यह पड़ताल कर लें की सही स्थान पर खुदाई शुरू कर रहे हैं, कहीं बंजर रेगिस्तान में तो नहीं समय बर्बाद कर रहे हैं। इसी तरह आध्यात्मिक यात्रा से पहले, जानकार लोगों से मार्ग दर्शन लेना आवश्यक हैं। ‘कर्ताहीन भाव की बात ऊपर की गयी हैं।हमें सिर्फ अपना कर्म, अपना रोल करते जाना हैं, यह चिंता, यह ज़िद, नहीं करनी हैं कि हमें वही रोल मिले जो हम चाहते हैं, नतीजे भी बिलकुल वो निकलें, जो हम अपनी सीमित बुद्धि से चाहते हैं। आपको बस अपनी सुपात्रता बरकरार रखनी हैं।
वो परमपिता आपको अपने किस कार्य के लिए इस्तेमाल करें, यह उस पर छोड़ दें, स्वयं ज़िद न करें। यदि आपकी सुपात्रता SPG के कमांडो वाली हैं, तो विश्वास रखें कि वह आपको उसी स्तर के कार्य, उसी सुपात्रता के स्तर के यज्ञ के लिए, इस्तेमाल करेगा आपकी ड्यूटी, होमगार्ड की जगह कार पार्किंग में हरगिज़ नहीं लगायेगा। लेकिन आपकी सुपात्रता के बारे में कोई शक या शंका नहीं होनी चाहिए और यह पूरी तरह आपकी निष्ठां और आपके कर्मों, आपके समर्पण पर निर्भर करेगा’।
प्रार्थना यही होनी चाहिए कि: ‘Let Thy Will be my Ambition’ यानि कि हे, ईश्वर! मेरे मन में ऐसा कोई विचार ही न आये, जो तेरी इच्छा से, तेरे मास्टर प्लान (Divine Plan) से, भिन्न हो। ‘ईश्वर के प्रति आस्था, विश्वास और समर्पण ठीक उसी प्रकार का होना चाहिए, जैसा बच्चे का अपनी मां के लिए होता हैं। जैसे आप कभी भी किसी बच्चे से पूछे कि अपनी मां बदलेगा ? तो आप जानते हैं कि बच्चा एक बार भी ऑफर के डिटेल्स जानने की कोशिश नहीं करता है। ऑफर क्या,और कैसा है, कौन सी दूसरी मां Offer पे हैं? ऑफर पे मिलने वाली मां, कैसी लगती हैं या कितनी पैसे वाली हैं या उसके साथ और क्या क्या फ्री मिल रहा है ? वगैरह – वगैरह। कोई भी प्रलोभन, कोई भी भय, आपके अपने ईश्वर के प्रति आस्था और समर्पण को डिगा न सके।समर्पण इस दर्ज़े का चाहिए।
इसलिए आज का सूत्र है :
‘वह सुख नहीं चाहिए, जो तुझसे विमुख कर दे’ ।
आज बस इतना ही
At HIS feet,