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रोज़ाना एक कविता: कल्पना

अमिता दुबे

कल्पना तुम क्या थीं?
हवा का झोंका फूलों की महक,
पंजाब की सौंधी मिट्टी की गमक
या आकाश में चमकने वाले तारे की चमक

कल्पना तुम क्या थीं?
कल्पना तुम थीं शायद
अपनी बहनों और सभी लड़कियों की तरह
मां के आंगन की चिड़ियां
पिता की बगिया की कलियां
पंजाब की मिट्टी में उगने वाली फलियां

कल्पना तुम क्या थीं?
कल्पना तुम तो थीं
कल्पना की वह उड़ान
जो हर लड़की
समय की सीढ़ी पर खड़ी
खुली और मुंदी आंखों से
हर दिन उड़ती है।

कल्पना तुम क्या थीं?
कल्पना तुम वास्तव में थीं
उस नारी शक्ति का सकार रूप
जो नवीन सृजन के लिए
जीवनोत्सर्ग से भी
नहीं हिचकती।

कल्पना तुम मां थीं
नहीं कोपलों को अपने में
सहेजने वाली
शोध–सृजन को नई दिशा
और आधार देने वाली।

कल्पना तुम कल्पना थीं
मां –बाप की, देश, विश्व की
नारी अस्मिता की ईश्वरीय आज्ञा की।
कल्पना तुम कल्पना थीं।

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