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रोजाना एक कविता : आज HUG DAY पर पढ़ें प्रेम में भीगी विमल कुमार की कविता ‘आलिंगन’

रोजाना एक कविता : आज HUG DAY पर पढ़ें प्रेम में भीगी विमल कुमार की कविता 'आलिंगन'
रोजाना एक कविता : आज HUG DAY पर पढ़ें प्रेम में भीगी विमल कुमार की कविता ‘आलिंगन’

प्रेम केवल आलिंगन नहीं है
चुम्बन नहीं हैं वह केवल
ये कहना भी प्रेम नहीं है
कि मैं तुमसे करता हूँ प्रेम

प्रेम तो सिर्फ़ एक स्मृति है
जो उस थोड़ी झुकी हुई बेंच के रूप में है दर्ज
हमारे भीतर
जहाँ कही बैठे थे हम
उन सीढ़ियों की स्मृति के रूप में
जहाँ कहीं बैठकर हमने पी थी चाय कभी
अपने अपने दुःख के बारे में बातें की थी
अपने अपने सुख को भी साझीदार बनाया था
अगर तुम्हें उस प्रेम को फिर से पाना है कहीं
तो जाओ उस बेंच के पास जाओ
जाओ उस घास के पास
उन सीढ़ियों के पास
उस मेज़ और कुर्सी के पास
उस फूल के पास जाओ
जिसे तोड़कर लगाया था कभी तुम्हारे बालों में

कहो — मैं फिर आया हूँ इस बार निपट अकेला
प्रेम केवल स्मृति में नहीं है
वो तो एक दर्द में है जो टीसता है कभी-कभी

प्रेम अगर कहीं जीवित है
तो एक ख़्वाब में है
तमाम नश्वर चीज़ों के बीच

प्रेम दरअसल अमरता में है
किसी तरह की क्षणभंगुरता में नहीं

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