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रोजाना एक कविता: आज पढ़िए शिल्पा शर्मा की कविता ‘काश’

काश में उन्हें बता पाती
भले ही तुम्हें अवसर नहीं मिले
पर जो अवसर हमने पाए हैं
वो तुम्हारे समर्थन की देन हैं

काश में उन्हें बता पाती
तुमने पूरी उम्र घर की देखरेख में
बर्तन, चौके और खाने में गुजारी
पर घर से बाहर निकलकर
जो सफलताएँ हमने पाई
तुम उनकी बुनियाद हो

काश मैं उन्हें बता पाती
तुम्हारे सपनों को वो पंख नहीं मिले
जो मिलने चाहिए थे
तुम्हारी प्रतिभा को वो रंग नहीं मिले
जो मिलने चाहिए थे
तुम्हारे व्यक्तित्व को वो संबल नहीं मिला
जो खिलने के लिए निहायत ज़रूरी था
पर ये तुम्हारा मौन समर्थन ही था
जिसने हमें संबल दिया

काश मैं उन्हें बता पाती
कि अब समय बदल रहा है।
लोग समझ रहे हैं
हमारा पूरक पुरुष बदल रहा है
और ये बदलाव सकारात्मक है

काश मैं उन्हें बता पाती
ये इसलिए संभव हुआ है
क्योंकि आज के पुरुष को
तुमने दी है परवरिश कुछ इस तरह
कि वो सीखे सही मायनों में
महिलाओं को अपनी
मित्र समझना, सहचरी समझना
अपना ही आधा हिस्सा समझना
काश मैं तुम्हें ये सब बता पाती…

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