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रोजाना एक कविता : आज पढ़ें प्रमोद पाठक की कविता एक कहानी आसमान की

रोजाना एक कविता : आज पढ़ें प्रमोद पाठक की कविता एक कहानी आसमान की

आसमान एक बच्चा है
और चाँद उसके मुँह में घुलता हुआ बताशा
वह घुलता जाता है मुँह में हर रोज़
और टपकती जाती है लार
फैलती जाती है चाँदनी
घुलते-घुलते एक दिन बीत जाता है बताशा
आसमान फिर मचलता है
रोता हुआ पाँव पटकता है
उसकी माँ रात
फिर कहीं ढूँढ़ती है बताशा—
इधर-उधर कोनों-कुचारों में,
जंगल के गुच्छों में, नदी के नीचे, पहाड़ों के पीछे,
समंदर के डिब्बे में आख़िर उसे मिल ही जाता है
तारों भरी थैली में पड़ा एक और बताशा चाँद
जिसे पिछली बार रख दिया था सँभालकर इसीलिए
कि पता था फिर मचलेगा आसमान बताशे के लिए
उसकी एक-एक हरकत से वाक़िफ़ है
लाकर रख देती है मुँह में बताशा
इस तरह कुछ रोज़ फिर चुप और शांत रहता है आसमान।

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