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रोजाना एक कविता : आज पढ़ें नरेश मेहता की कविताऑंखें

यदिआँखें
देख रही हों पेड़ या कि आकाश
देखने देना,
यदि अधर
बुदबुदाते हों कोई भी नाम
बोलने देना,
यदि हाथ
उठे हों देने को आशीष
असीसने देना
यदि तत्व
माँगने आये हों
निज तत्व
उन्हें ले जाने देना;

उस दिन
हाँ, उस दिन ही सही,
पर जागेगा अन्तर बिराजा अवधूत वह
जिसे लेना कुछ नहीं है
किसी से भी नहीं
केवल देना, देना, देना ।

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