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रोजाना एक कविता : आज पढ़ें सुभाष राय की कविता बदलाव की बयार

A poem a day

दुख बढ़ता है तो बढ़ने दो
दिन दर्द भरा कुछ चढ़ने दो
ठिठुरे हैं‌ सब डर के मारे
आंगन में‌ धूप उतरने दो

यातना हुई अब ज्वाला है
यह धरती तपने वाली है
इस जोर- जुलम से जनता को
अब छुट्टी मिलने वाली है

बरबादी बहुत हुई यारां
बढ़ गया सघनतर अंधियारा
अब झूठा फिरने वाला है
हर गली- गली मारा- मारा

घंटे घड़ियाल बजाने से
डुबकियां अनेक लगाने से
कुछ हाथ नहीं लगने वाला
बेमन का राग सुनाने से

संगी-साथी सब छोड़ चले
मुंहलगे आज मुंह मोड़ चले
जो साथ धमाल मचाते थे
वे रिश्ते- नाते तोड़ चले

कन्दरा गुफाएं बुला रहीं
जा अब जल्दी तू निकल भाग
सत्ता हाथों से खिसक रही
सुलगा जन मन में आग राग

यह जनता का नजराना है
यह जनता का परवाना है
तू राम बोलकर आया था
तू राम बोल अब जाना है

जो आया था रथ पर चढ़कर
अब पैदल जाने वाला है
यह हवा दहकने वाली है
सब दृश्य बदलने वाला है

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