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रोजाना एक कविता : आज पढ़ें मार्कण्डेय राय नीरव की कविता कौस्तुभि चटर्जी

कौस्तुभि चटर्जी मुझे तुम्हारा नाम और थोड़ा-सा पता
बांद्रा के एक पेशाबघर में मिला
नाम और थोड़े-से पते के साथ यह भी लिखा था कि तुम छिनाल हो
थोड़ा-सा पता इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि
किसी थोड़े-से भले आदमी ने पते को थोड़ा-सा मिटा दिया था
मुझे कहने की इजाज़त दो तो सबसे पहले कहना चाहूंगा
तुम्हारे नाम में अपूर्व आकर्षण है
किसी पुराने गीत की तरह ये नाम मेरे ज़ेहन में रह-रहकर गूँजता रहा
तुम्हें यह भी बता दूँ कि मेरी एक प्रेमिका है
जिससे मैं बेहद प्यार करता हूँ
लेकिन उसका नाम मुझे कभी इस तरह नहीं लगा
मुझे नहीं मालूम उस टेक्स्ट को पढ़कर लोगों ने तुम्हारे चरित्र के बारे में क्या अनुमान लगाया होगा
मेरे मन में तो केवल एक छवि उभरी
कौस्तुभि चटर्जी यानि साहसी और सुंदर
साहसी उन तमाम स्त्रियों की तरह
जिनके भीतर रक्त बिजली की तरह दौड़ता है और जिनके थप्पड़ों के निशान कहीं अधिक गहरे और अर्थवान हैं
पेशाबघर की दीवारों पर लिखे गए कुंठित बयानों की तुलना में
और सुंदर रूप, रंग के अर्थ में नहीं
वह भी उसी अर्थ में
जिस अर्थ में साहसी।

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