India Ground Report

रोजाना एक कविता : आज पढ़ें -धर्मवीर भारती की कविता ठंडा लोहा

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ये फूल, मोमबत्तियाँ और टूटे सपने
ये पागल क्षण, यह कामकाज, दफ़्तर – फ़ाइल
उचटा – सा जी, भत्ता -वेतन
ये सब सच हैं.

इनमें से रत्तीभर न किसी से कोई कम
अंधी गलियों में पथभ्रष्टों के ग़लत क़दम
या चंदा की छाया में भर-भर आने वाली आँखें नम
बच्चों की – सी दूधिया हँसी
या मन की लहरों पर उतराते हुए कफ़न
ये सब सच हैं.

जीवन है कुछ इतना विराट, इतना व्यापक
उसमें है सबके लिए जगह, सबका महत्व
ओ मेज़ों की कोरों पर माथा रख-रखकर रोने वालो
यह दर्द तुम्हारा नहीं सिर्फ़,
यह सबका है, सबने पाया है प्यार
सभी ने खोया है, सबका जीवन है भार
और सब ढोते हैं,
बेचैन न हो ये दर्द अभी कुछ गहरे और उतरता है
फिर एक ज्योति मिल जाती है
जिसके मंजुल प्रकाश में सबके अर्थ नए खुलने लगते
ये सभी तार बन जाते हैं
कोई अंजान उंगलियाँ इन पर तैर-तैर
सबमें संगीत जगा देतीं अपने-अपने
गुथ जाते हैं ये सभी एक मीठी लय में
यह कामकाज संघर्ष विरस कड़वी बातें
ये फूल मोमबत्तियाँ और टूटे सपने…

यह दर्द विराट ज़िंदगी में होगा परिणत
है तुम्हें निराशा फिर तुम पाओगे ताक़त
उन अंगुलियों के आगे कर दो माथा नत
जिनके छू लेने भर से फूल सितारे बन जाते हैं ये मन के छाले
ओ मेजों की कोरों पर माथा रख-रखकर रोने वाले
हर एक दर्द को नए अर्थ तक जाने दो…

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