
वादा और दावा
दुनिया के दो पाँव हैं
इन्हीं पर टिकी है दुनिया
लोगों ने दावा किया ईश्वर है
और धर्म/मज़हब/रिलीजन/पंथ बन गए
लोगों ने वादा किया प्रेम का
और आँखें निहारती रही भविष्य की तरफ उम्मीद से
दावे ग़लत होते आए हैं
वादे टूटते रहे हैं
ये दुनिया कभी लंगड़ा कर चली
कभी रेंग कर
कभी कभी ठहर भी गई कुछ पलों के लिए
मैं कल्पना में भी स्वर्ग नहीं माँगता
मोक्ष और मुक्ति से कोई आसक्ति नहीं
सब कुछ सुंदर होगा
इस भ्रम में नहीं पड़ता
मैं जानता हूँ
ये दुनिया अधिकतम लंगड़ा कर ही चलेगी
मैं किसी लंगड़े की तरह लंगड़ाते हुए नहीं देखना चाहता इसे
दुनिया की लगड़ाहट इख्खट-दुख्खट खेलती बच्ची की लंगड़ाहट लगे
अधिकतम बस यही चाहता हूँ
मैं चाहता हूँ कि वादे की टाँग सदा सलामत रहे
फिर चाहे दावे की टाँग टूट जाए
एक वादा ज़रूरी है
दुनिया के किसी खेलती हुई बच्ची में बदल जाने के लिए